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तीसरा उच्छ्वास
समस्त प्राणीलोक के ताप का निवारक, अनेक प्रकार के वृक्ष, लता, पुष्प, फल और गुल्म तथा विचित्र प्रकार के तण और वनस्पतियों का उत्पादक, निर्जल प्रदेश का एक मात्र आधार और कृषिकों द्वारा अनिमिष दृष्टि से देखा जाने वाला तथा चिर-प्रतीक्षित वर्षा-काल का आगमन हुआ। उस समय आकाश में मेघमाला उठीं । वह भ्रमर और महिष की तरह कृष्ण होती हुई भी नयनाभिराम थी; धूलि के ढेरों को उठाती हुई भी नीरज थी; अन्धकार फैलाती हई भी मन को प्रकाशित करती थो; चञ्चल प्रकाश वाली होती हुई भी भविष्य के उज्ज्वल प्रकाश को लक्षित करती थी; कर्णभेदी गर्जना करती हुई भी कर्णप्रिय थी; प्राचीन पवन से प्रेरित होती हुई भी वह नवीन थी। 'मैं अभी सबको संतुष्ट कर द्' मानो ऐसा सोचकर धाराप्रवाह से वर्षने लगी। चारों ओर आकाश और भूतल जल से प्लावित हो गया । हमें संग्रह रुचिकर नहीं है- इस प्रकार सोचते हुए मानो पनाले मूसलाधार रूप से नीचे गिरने लगे । नगर की गलियों ने विविध नदियों का रूप धारण कर लिया था। सूखे कुओं में भी ऊपर तक पानी भर गया। जलराशि धारण करने में असमर्थ तुच्छ तालाबों से पानी छलक कर आगे बहने लगा । जल से आप्लावित नदियों ने अपने तट को विशाल बना लिया। ताप का नामोनिशान मिट
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