________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तीसरा उच्छ्वास
२७
धनदत्त अकस्मात् सामने मिला। उसका मुख कमल विकसित था । किंतु उसका अन्तःकरण अत्यंत कलुषित था ! काष्ठ-भार से सुगन्धि फूट रही थी । धनदत्त को यह देखकर अत्यंत विस्मय हुआ । उसने सोचा- 'ओह ! इस अज्ञानी व्यक्ति के सिर पर यह अमरचंदन कहां से आया ? क्या घुणाक्षर के न्याय से ही तो इसे प्राप्त नहीं हुआ है ? क्या मूर्ख ब्राह्मण को कभी चिंतामणि प्राप्त नहीं हुआ था ? कभी-कभी प्रकृति भी कुतूहल तत्परा बन जाती है । मैं इसकी मूर्खता का अतुल्य लाभ लूँ । जो व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से फूटती हुई सुगंध को भी नहीं पहचानता उस मूढ़ को, 'यह चंदन है' इसका ज्ञान कहां से हो सकता है' ऐसा सोचकर वह रोमाञ्चित हो उठा ! वह धूर्त प्रेमपूर्वक जिनदत्त से कहने लगा - " -- "भाई ! क्या यह ईंधन बेचना है ? अगर बेचना है तो उचित मूल्य बता । सज्जन की यह प्रणाली है कि वे अपने मुँह से मिथ्या बात नहीं कहते। एक बार कहकर पुन: नहीं नकारते । मुख की आकृति से तु भी भद्र पुरुष दीख रहा है । इसलिए यथेष्ट मूल्य को बता, मैं भी उसे नहीं बदलूंगा ।" सभ्य पुरुष की भांति दीखने वाले धनदत्त की सुन्दर बातों को सुनकर ऋजुहृदय और वञ्चना के रहस्य से अज्ञात, अपने आशय से दूसरे के आशय को आंकने वाला सेठ जिनदत्त आनंदित हुआ और कहने लगा'सेठ जी ! आपका कहना ठीक है । मैं निरर्थक बात नहीं करूँगा । निश्चित ही मुझे यह काष्ठ भार बेचना है ! अन्यथा हम जैसे व्यक्तियों का गृहस्थाश्रम कैसे चल सकता है ? हम प्रतिदिन नया कुआं खोद कर पानी पीते हैं ? आप जैसे व्यक्तियों की भांति हमें अपना खजाना भरने का अवसर नहीं आता । इस काष्ठ भार का मूल्य केवल ढाई आने मात्र है । इससे ज्यादा या कम नहीं होगा, यदि आपको लेना है तो ........"
अमरचंदन की पहचान से अज्ञात सरलमतिवाले जिनदत्त की बात सुनकर वह कुशल ठग धनदत्त बहुत प्रसन्न हुआ । उसने कहा-अच्छा, अच्छा भाई ! तू ने उचित मूल्य मांगा है। मैंने भी इतना ही अनुमान किया था । हमें भी तेरे जैसे कठिन परिश्रम करने वालों का यथार्थ मूल्यांकन करना चाहिए, अन्यथा अपने पसीने की बूंदों से सिक्त परिश्रम की अवमानना होती है | हाय ! कितना अन्धकार है ? जो व्यक्ति सतत परिश्रम करते हैं, अपने शारीरिक सुख की अवगणना करते हुए शीत और ताप आदि के क्लेश सहते हैं वे भूखे प्यासे और बेघरबार रहते हैं तथा उन्हें विद्याभ्यास का अवसर ही प्राप्त नहीं होता, वे रोगी और नग्न रहते हैं, वे उपेक्षित होते हैं । वे घृणा की दृष्टि से देखे जाते हैं। इससे विपरीत जो व्यक्ति दूसरों के श्रम का लाभ
For Private And Personal Use Only