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तीसरा उच्छ्वास
इधर मन्मन भी मध्यान्ह की भोजन वेला जानकर 'पुत्र रत्नपाल बहुत देर तक भूखा न रह जाए' - ऐसा सोचकर शीघ्र ही घर आ गया । किन्तु उसे अपने नयनों का चन्द्र पुत्र रत्नपाल नहीं दीखा । ' क्या ऋण लेने के लिए गया हुआ वह अभी तक नहीं लौटा ? भायें ! तेरी गोद में क्रीड़ा करने वाला पुत्र अभी क्यों नहीं आया ? तू पुत्र की चिता से निरपेक्ष होकर दूसरे कार्यों में कैसे रत हैं ?' इस प्रकार मन्मन ने उच्च स्वर से अपनी पत्नी को पूछा ।
पत्नी ने साश्चर्य कहा - 'अभी-अभी मैंने उसे आते हुए देखा था । परन्तु बाद में वह चपल कहा गया—- इसका मैंने ध्यान नहीं दिया ।"
'वह कहाँ छुप गया है' — ऐसा सोचकर मन्मन विस्मय और खेद की दृष्टि से उसे ऊपर नीचे हूँढ़ने लगा । कृपण मन्मन ने शुष्क मुखकमल वाले रोते हुए, कंधे को नीचे किए हुए भूमि पर बैठे अपने पुत्र को देखा ।
उसने कहा—'अरे ! यह क्या ? यह क्या ? पुत्र ! किस दुर्भाग्य ने तुझे पीड़ित किया है जिसके कारण रो रहा है ? किस मदान्ध ने तेरा अपराध किया है ? जो तेरी अवमानना करता है, क्या उसे अपना जीवन अप्रिय है ? तू प्रतिदिन हँसमुख रहता है, आज विमन और दुर्मन क्यों है ? क्या तुझे इच्छित वस्तु नहीं मिली ? क्या आज रूखे स्वभाववाली तेरी मां ने तुझे डांटा है ? अथवा ऋण चुकाने वाले ग्राहक ने तेरा पराभव किया है ? बोल वत्स, बोल ! तेरा व्याकुल पिता तुझसे यथार्थवृत्तान्त पूछ रहा है । मैं उसका शीघ्र ही प्रतीकार करूंगा।' इस प्रकार आश्वासन देते हुए मन्मन ने भुजाओं से पकड़ कर अपने पुत्र को उठाया और गोद में ले लिया ! उसके मस्तक को घता हुआ आंसुओं से गीले उसके मुख को पोंछने लगा ।
इस प्रकार मन्मन ने रत्नपाल से साग्रह पूछा । तब वह यथार्थ बात प्रकट करने के लिए प्रेरित हुआ और उसने गद्गद् भाषा में यथा ज्ञात रहस्य स्पष्ट रूप से कह सुनाया । उसने कहा - 'श्रेष्ठी प्रवर ! आप मेरे पिता के समान पूजनीय है, किन्तु मुझे पैदा करने वाले वास्तविक पिता नहीं है । सारा रहस्य आज मैंने जान लिया है । स्नेह रूपी अंकुर के लिए मेघ के समान महामना तथा सात्त्विक वृत्ति वाले जिनदत्त मेरे पिता हैं ! प्रेम की नदी भानुमती प्रत्यक्ष रूप में मुझे जन्म देने वाली मेरी माता है । हाय ! हाय ! दरिद्रता रूपी दावानल से दग्ध व धन के बदले में मुझे तुम्हारे घर में छोड़ कर अज्ञात रूप से कहीं चले गए हैं ! आज यदि मेरे माता-पिता आकर मुझे कहे 'चलो पुत्र' -- तो मैं
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