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रयणवाल कहा
प्रियवादिनी और दानशीला भानुमती साक्षात् लक्ष्मी के समान थी । जब तू गर्भ में था तब अकस्मात् तेरी समृद्धि पर आपत्ति आ पड़ी। वंश-परम्परा से संचित सारी लक्ष्मी स्वप्न की तरह विलीन हो गई । धन के विनिमय से तुझे मन्मन के घर में रखकर तेरे माता-पिता रात में बिना किसी को कुछ कहे, यहाँ से अन्यत्र चले गए।" इस प्रकार कहते हुए उस वृद्ध की आंखें डबडबा आई । "तेरा पिता मेरा परम मित्र था। दूसरा ऐसा सज्जन व्यक्ति मैंने नहीं देखा ! पुत्र वे तेरे विरह से दुर्बल होकर अपने विपत्ति के समय को अब कहाँ बिता रहे हैं -- यह मैं नहीं जानता। कुल सूर्य ! यह तेरा परम कर्तव्य है कि तू अपने पिता द्वारा लिखित प्रतिज्ञा पत्र के अनुसार अपने हाथ से खूब धन कमाकर, ऋण मुक्त होकर अपने माता-पिता की गवेषणा कर उनके साथ अपने घर चला जा। सौम्य ! वही पुत्र आनन्ददायी होता है जो अपने वंश का उद्धार कर्ता, माता-पिता को सुख देने वाला तथा अपने पूर्वजों के नाम को उज्ज्वल करनेवाला होता है। देख, खेद करने से कुछ नहीं होगा । जो कुछ होगा वह बड़े पुरुषार्थ से ही होगा ! मेरी कल्पना है कि तू अपने शून्य घर को अवश्य हराभरा करेगा'-- इस प्रकार कहकर वह वृद्ध पुरुष रत्नपाल को विश्वास की दृष्टि से देखने लगा !
कानों को कांटों की भांति चुभने वाले अश्रुतपूर्व अपने अतीत के वृत्तान्त को सुनकर रत्नपाल लिखित चित्र की भांति, मंत्र से कीलित (सर्प) की भांति स्तब्ध, उद्विग्न, विस्मित और रोमाञ्चित हो गया । “अरे ! आज तक मैंने अपना वृत्तान्त नहीं जाना। ओह ! उस ग्राहक ने ठीक ही कहा था । खेद ! मैं क्रीतदास हूँ । माता-पिता की वैसी प्रवृत्ति मेरे हृदय को पीड़ित कर रही है ! मेरे निर्लज्ज जीवन को धिक्कार है, जिसका जन्म भी सब कुछ विध्वंस करने वाला हुआ है । मैंने ऐसा कौन-सा कलुषित आचरण किया है ? हा ! मैं कुलांगार हूँ, मेरा वृत्तान्त कौन नहीं जानता । ओह । ऐसा क्यों हुआ ? मैं मानता हूँ कि मेरे परम श्लाघनीय पूज्य माता-पिता दुखित हैं । अहा ! यदि मैं गर्भ से गिर जाता तो मेरे माता-पिता की ऐसी दशा नहीं होती ! अब मुझे क्या करना चाहिए ? ज्यादा चिन्तन करने से क्या होगा ? पुरुषार्थ से सब कुछ अच्छा होगा" इस प्रकार उसका हृदयसागर अनेक विकल्पों से विलोड़ित हुआ, वह उस स्थविर को प्रणाम कर शीघ्र ही वहां से लौट पड़ा और कहीं भी आनन्द न पाता हुआ सीधा घर चला आया। घर आकर वह आँसुओं से गीले कपोल पर हाथ रख कर भूमि को कुरेदता हुआ एक ओर खुली जमीन पर चुपचाप बैठ गया !
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