Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 278
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रयणवाल कहा वहाँ जिनदत्त नाम का धनाढ्य सेठ रहता था। उसकी प्रकृति भद्र और हृदय दया था। नगर के सभी नागरिक उसको सम्मान देते थे। वह मेढ़ी (खेत में धान्य के खलिहान के मध्य में काष्ट रोपा जाता है, जिसकी परिक्रमा करते हुए बैल घूमते हैं उसे मेढ़ी कहते हैं) और चक्षुभूत व्यक्ति था । वह सामायिक, प्रति क्रमण और पौषध का यथासमय आचरण करता हुआ अपना समय बिताता था। वह निरन्तर अपनी आत्मा में श्रावकों के तीन मनोरथों का चिन्तन करता हुआ दुस्तर और दुरवगाह संसार सागर को पार पाने का प्रयास करता था। वह धन संपदा से अधिक धर्म संपदा को बहुमान देता था। 'यौवन नदी के जल की तरह प्रवहमान है, जीवन बिजली के प्रकाश की भाँति क्षणिक है, आगे या पीछे सब कुछ छोड़ना होगा'-इस प्रकार चिन्तन करते हुए वह सदा अप्रमत्त रहता था। वर्षारंभ होने पर मयूर की तरह भावितात्मा मुनियों के दर्शन प्राप्त कर वह प्रफुल्लित हो उठता था और आदर-पूर्वक अपने साथियों के साथ तत्वग्रहण की उत्सुकता से हाथ जोड़कर एकाग्र मन उन मुनियों का धर्मोपदेश सुनता था । उसकी पत्नी का नाम भानुमती था। वह मनुष्य शरीर में अप्सरा की भांति अत्यन्त सुन्दर और गुणों की साकारमूर्ति थी । वंश-परम्परा से लब्ध, उच्च संस्कारों से युक्त साक्षात् विनय संपदा की भाँति थी। उसकी दृष्टि लज्जा से सदा नत रहती थी और उसका व्यवहार मधुर था। उसके नेत्र रूपी कमल सदा खुले रहते थे, किन्तु, परदोष-दर्शन के लिए उसकी दोनों पलकें बन्द रहती थीं। यद्यपि उसका हृदय नवनीत की भांति कोमल था, फिर भी गृहीत प्रतिज्ञाओं के संरक्षण में वह वन की तरह कठोर था। उसके वचन सब के लिए आह्लादकारी थे। कुल मर्यादा ही उसकी परम गरिमा थी। गुरुजनों के प्रति वह सदा विनयशील और हाथ जोड़े रहती थी। कोई व्यक्ति कुछ कहता तो वह मुस्कराती हुई 'ठीक है'-ऐसा कहकर स्वीकार करती थी। सिरीष के फूल की भाँति उसका शरीर कोमल था, किन्तु वह घर के कामों में अखिन्नभाव से निरन्तर लगी रहती थी। इस कठोर श्रम के लिए उसके पड़ौसी उसकी प्रशंसा करते थे। “गृहस्थ के सभी व्यवहारों के लिए इसे पूछना चाहिये"--इस प्रकार वह सभी व्यक्तियों के लिए प्रिय और विश्वासयोग्य बन गई थी। उसके प्रतिस्पर्धी भी अन्यत्र अलभ्य उसके स्वाभाविक मधुर व्यवहार को देख अपना वैरभाव भूल उसके मित्र बन गए थे। For Private And Personal Use Only

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