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पहला उच्छ्वास
देव अकथनीय प्रभाव वाले होते हैं । हम पर आप अनुग्रह करें । महानुभाव अनुग्रहशील होते हैं ।" इस प्रकार भानुमती विनय - पूर्वक कहती हुई उनके चरणों में गिर पड़ी ।
तत्काल कृपालु यक्षाधिपति ने अवधिज्ञान से उनका भविष्य देखा और कुछ म्लान से बनते हुए प्रत्युत्तर में कहा - "श्रेष्ठिवर ! मैं वर देते हुए लज्जित होता हूँ ! सुनो, यदि पुत्र होगा तो लक्ष्मी का नाश होगा। तुम्हें घरवार छोड़ना होगा, पुत्र भी औरों के हाथों में वृद्धि पाएगा। बोलो, क्या वरदान दूं ? भानुमती का हृदय हर्ष से प्रफुल्लित और मुख - कमल विकसित हो गया। पति के बोलने के पहले ही वह कहने लगी -- " आपके वरदान का मैं अभिनन्दन करती हूँ- आप अनुग्रह करें, अनुग्रह करें । यक्षनाथ ! यदि ऐश्वर्य के विनिमय से कुल सूर्य (पुत्र) के दर्शन होते हैं तो कुछ भी चिन्तन करने की आवश्यकता नहीं है । पुत्र से विहीन व्यक्तियों का हृदय प्रतिपल विक्षुब्ध रहता है । उस दरिद्रता से उत्पन्न दुःख को पुत्र का मुख देखकर विस्मृत हो जायेंगे । इसलिए देव ! कृपा करें । "
कृपालु यक्ष ने उसी क्षण 'तथास्तु' कहा । दंपति हाथ जोड़े खड़े रहे । यक्ष युगल तत्क्षण अन्तर्ध्यान हो गया ।
कुछ काल बीता ! भानुमती गर्भवती हुई । हर्ष का सागर उमड़ पड़ा । सभी स्वजनों ने यह जाना कि सेठानी भानुमती गर्भवती हुई है। उन्हें आनन्द हुआ। किन्तु अब चिरसंचित ऐश्वर्य प्रतिदिन नष्ट होने लगा । एक ओर से यह समाचार प्राप्त हुआ कि विविध बहुमूल्य पदार्थों से भरे हुए जहाज समुद्र में डूब गए हैं। एक ओर से यह संदेश आया कि कहीं गेहूँ आदि धान्यों के भंडार अकस्मात् अग्नि से जल गए हैं। दूसरे स्थान से यह वृत्तान्त प्राप्त हुआ कि अमुक प्रमुख मुनीम बहुत सम्पत्ति लेकर भाग गया है । इधर व्यापार में सभी वस्तुओं के भाव मन्द हो गए । छः महीनों में सेठ जिनदत्त चारों ओर दरिद्रता से घिर गया। सभी कर्मचारी, भृत्य, व्यापारी और चिर-परिचित व्यक्ति सेठ को छोड़कर दूसरों के अधीन चले गए । इसी प्रकार मित्र, स्वजन, भागीदार और सहचर भी विमुख होगए । ऋण माँगने वाले लोगों ने सेठ की तत्रस्थित स्थावर और जंगम सारी संपत्ति पर अधिकार कर लिया । अदृष्ट भूमिगत धन भी कोई चुरा लेगया। इस प्रकार जिनदत्त निर्धन हो गया । सेठ ने सोचा- "अरे !, यह क्या हुआ ? वंश परंपरा से संचित लक्ष्मी बादलों की तरह कैसे नष्ट हो गई ? विधि का कार्य विचित्र
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