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श्री चन्दनमुनि विरचित प्राकृतभाषा-निबद्ध रत्नपाल-कथा
(हिन्दी रूपान्तर)
मंगलाचरण
(१) मैं भक्तिपूर्वक अर्हन्तदेव का स्मरण करता हूँ। । उनमें सहज ही अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतचारित्र और
अनंतबल प्रस्फुटित होते हैं। (२) आठों ही कर्मों का समूल नाश कर स्वभाव में लीन तथा जन्म
मरण से रहित सिद्ध भगवान मुझे सिद्धि प्रदान करें-मुझे मेरा
लक्ष्य प्राप्त कराए। (३) आचार्य समस्त प्राणियों को सम्यक्त्व और ज्ञान की संप्राप्ति
कराकर उनका महान् उपकार करते हैं। कौन उनकी स्तुति नहीं
करेगा? (४) जिनके सान्निध्य से विद्या का विस्तार सुलभ होता है, वे भवतप्ति
को उपशान्त करने वाले उपाध्याय मेरे शरणभूत हों। (५) उन साधुओं के पद-पंकज में कौन प्रणत नहीं होता, जिनके दर्शन
मात्र से कोटि-कोटि भव परंपराओं का नाश होता है ।
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