Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
संयम ने सुयश री रति दनोंदन बढ़ती रे
मेवाइसंघ शिरोमणि प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज
मने अणी बात री घणी खुशी है के पं० प्रवर उपाध्याय मैं देख्यो, ज्या सभा शास्त्र री गेरी-गेरी बांतां राजस्थान केसरी अध्यात्मयोगी श्री पुष्कर मुनिजी महाराज सुणतां-सृणतां सुस्ताई री ही के पुष्कर मुनिजी के आतां रो सार्वजनिक अभिनन्दण करवा रे वास्ते जैन समाज ई ने थोड़ा क बोलताई सारी सभा में खिलखिलाट फैलगी, प्रयत्नशील है। यूं तो मुनि जीवन सदा ई अभिनन्दणीय सुस्ती उड़गी, ई रो मतलब यो नी के वे वखाण में हँसी व्यां करे, पण आखा समाज का चार तीर्थां रा प्रमुख एक मजाक की वातां ई ज करे, वणां रा व्याख्यान में तत्वज्ञान रूप व्हे, जणी महापुरुष रो स्वागत करे, वा पछे मामूली री विवेचना भी वै पण, अणां को व्याख्या करवा रो बात नी रे, समाज तहदिल या बात मंजूर करे के तरीको अस्यो सरस है के, श्रोता देखताई रेइजा। अणारा आपाणां ऊपरे, अनेक उपकार है, ने वणां उपकारां श्री पुष्कर मुनिजी महाराज में सब सू म्होटो गुण रे बदले सौ सौ अभिनन्दण भी करां तो उरिण नी वां जदी, गुरुभक्ति रो है। अणां रा गुरु महास्थविर श्री ताराचन्द समाज ठेठ हिया सूं स्वागत कर वणां महापुरुषां रे प्रति जी महाराज म्हाणे मेवाड़ में ई ज्यादा विचऱ्या इं सू हूँ आपाणी श्रद्धा अर्पित करे।
जा' के अणां वणां री कतरी सेवा भक्ति की दी। पं० प्रवर श्री पुष्कर मुनिजी महाराज साहब रे वास्ते श्री ताराचन्द जी महाराज का अबका दनां में, केवल जदी मूं सोचूं तो म्हारा मन में वणी वगत या बात आवे श्री पुष्कर मुनिजी काम आया, कई भी कठिनाई ही पण, के आपां वणां रो एक अभिनन्दन कई, सौ अभिनन्दण भी छायां ज्यूं गुरुजी साथे र्या ने अन्त तक वणां ने छेह नी करां तो कम है।
दी दो, धन्य है अस्या सुपात्र चेला ने, आज श्री पुष्कर ओपता शरीर रा धणी, हँसमुख ने मिट बोल्या श्री मुनिजी के गुरुजी रो बोई आशीर्वाद फल यो है। पुष्कर मुनिजी महाराज समाज में एक सुहावणां सन्त रत्न है। आज योग्य चेला री संख्या भी बढ़ी, नाम पण
म्हारे नरीदाण साथे रेवा रो काम पड्यो, कदी अणां कमायो, यो सब अणां री गुरुभक्ति को फल है। ने में चढ्ये मूडे नी देख्या, गुलाब रां फूल ज्यू हर वखत भक्ति रे साथ ज्ञान-ध्यान रो अभ्यास भी कीदो, ने खुश मिजाज रेणों अणां रो स्वभाव है।
पीछे आपणां चेला ने भी योग्य बणाया, आज श्री पुष्कर बातचीत में खूब खुल्या, साफ सटक केणों पण मुनिजी महाराज ने अणां रो सिंघाडो अच्छो चमक रयो मिठास सूया अणां री विशेषता है। ज्या बात, बातचीत है, या बड़ी खुशी है। री है वाई बात व्याख्यान री, कठेई कड़वाई नी, पूरो संयम ने सुयश री रति दनोंदन बढ़ती रे, याही व्याख्यान मीठो गट सुणताई जाओ, थाके पुष्कर मुनिजी म्हारी शुभ कामना है। पण सुणवावाला नी ऊबे।
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मन-वच मीठा, मुख पर चमके ब्रह्मचर्य का तेज । गंगाजल सम पावन जीवन नयनों बरसै हेज।
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