Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 15
________________ मध्यस्थ वाद मालाया द्वितीयम् पुप्पम् पुराण और जैन धर्म नमोभूयान्महेशाय, परेशायात्मने नमः । जगद्धिताय देवाय, वीत दोषाय वेधसे ॥१॥ महिन्दू जनता को पुराणों के विषय में अधिक परिचय RAN देना अनावश्यक है धर्म में अभिरुचि और श्रद्धा SM उत्पन्न करने वाले उनके कल्पित और ऐतिहासिक वृत्तान्त, आज भी उसकी हिन्दूजनता की नस नस में व्याप्त हो रहे हैं। पुराणों में कही २ जैन धर्म का भी वर्णन पाया जाता है । उसमे अधिकांश उसकी उत्पत्ति का ही उल्लेख है परन्तु वह बड़ा ही अद्भुत और विचित्र है इस लेख में हम उसी विषय की तरफ पाठको का ध्यान बँचत है आशा है पाठक उसके अवलोक्न की अवश्य कृपा करेंगे। वर्तमान समय में पुराण नामसे प्रसिद्धभागवतादि अन्धों में जैन धर्म की चर्चा करते हुए, जन समाज को उससे घृणा दिलाने का वा 847

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