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पुराण और जैन धर्म
का दीक्षा देकर बोले कि, हे दैत्यराज ! तुम हमारे ज्ञान सम्पन्न वचनों को सुनो, यह वेदान्त का सर्वस्व और परमोत्तम रहस्य है ॥२-३॥ यह संसार अनादि काल से चला आता है, कर्ता और कर्म से यह रहित है, यह आप ही प्रकट होकर आप ही लय हो. जाता है ।।४॥ ब्रह्मा से लेकर स्तम्ब पर्यन्त यह जितना देह का वन्धन है इसमें एक आत्मा ही ईश्वर है दूसरा कोई नहीं ॥५॥ तथा जो ब्रह्मा विष्णु और रुद्र नाम है ये सब देह धारियों के नाम हैं जैसे कि हमारे नाम हैं आदितो अरिहन् है ||६||
जैसे हम सरीखों के देह समय आने पर विलीन हो जाते हैं, ऐसे ही ब्रह्मा से लेकर मशक पर्यन्त सभी के शरीर समय आने पर लय हो जाते हैं । यदि इस देह का विचार किया जाय तो कहीं पर भी कुछ अधिक नहीं है आहार निद्रा, भय और मैथुन ये सर्वत्र समान हैं ।।८। सव ही देहधारी निराहार के परिमाण को प्राप्त होकर समान ही तृप्ति को प्राप्त होते हैं, इस में कुछ न्यूनाधिक नहीं है ।।९।। जैसे हम प्यासे होकर जल पीने से प्रसन्न होते हैं, वैसे ही दूसरे प्यासे भी होते हैं, इस में कुछ भी अन्तर नहीं ॥१०॥ रूप यौवन सम्पन्न चाहे सहस्रों खिये क्यों न हों परन्तु रति के समय में तो एक हो भोगी जाती है ।।११।। घोड़े चाहे सैकड़ों असंख्य हा पर अधिरोहण में एक ही काम आता है ।।१२।। पलंग पर सोने वालों को पलंग पर सोने से जो सुख मिलता है वही सुख पृथिवी पर सोने वालों को भीप्राप्त होता है ।।१३।। जैसा हम प्राणधारियों को मरण से भय है, ब्रह्मा से लेकर कीट पर्यन्त को भी वैसा ही मरण से भय है ॥१४|| यदि बुद्धि से विचार किया जाय