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पुरारा और जैन धर्म
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स्वस्थ हो गईं और बुढ़ापा आ गया तो फिर सुख कहां, इसलिये -सुख की इच्छा रखने वालों को तो श्रर्थी के निमित्त अपना शरीर -भी दे देना चाहिए ||३८|| याचना करते हुए को देख कर जिसका मन उसकी पीड़ा से दुःखी नहीं होता उसी के बोझ से यह पृथ्वी • दवती है। वृन, पर्वत और समुद्रों का उसे बोझ नहीं है ||३९|| यह देह शीघ्र हो जाने वाला है, संचित किये हुए पदार्थ तय होने वाले हैं ऐसा समझ कर ज्ञानी पुरुष अपने शारीरिक सुख की साधना करे ||१२|| यह शरार कुते, कौवे और कीड़ों का प्रातः -समय का भोजन होगा। वेद में ही पढ़ा जाता है कि, शरीर अन्त में भस्म होने वाला है ||११|| लोगों में यह जाति कल्पना व्यर्थ है सामान्य रूप से सब मनुष्यों में कौन अधम और कौन उत्तम है || ४२॥ मनकुमार जी बोले हे मुने ! उस यति ने इस प्रकार राजा और त्रिपुर निवासियां का उपदेश दे कर वेद विहित धर्मों का नाश किया और पतिव्रत धर्म, पुरुषों का जितेन्द्रियत्व धर्म तथा विशेष कर के देव-धर्म, श्राद्ध-धर्म, यश, तीर्थ और व्रत यादि का खंडन किया ||१० - ११ || शिव पूजन और विष्णु, सूर्य तथा गणेश आदि के पूजन, स्नान दान और पर्वकाल का भी उस नायात्री ने मंडन • किया ||२३|| हे विनेन्द्र ! अधिक कहने से क्या त्रिपुर में उस यतिराज के कहने से वेद विहित समस्त धर्मों का परित्याग हो गया । इत्यादि आगे बहुत कुछ वर्णन है ।
श्रालोचक-शिवपुराण के लेस को पाठकों ने पढ़ लिया इस साल में जिन बातों का उल्लेख किया गया है वे अन्य