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पुराण और जैन धर्म को वहां भाड़ देना यह कह कर हनुमान जी ने उनको वहां तीन' दिन रखकर अपने स्थान पर पहुंचा दिया इस समय ब्राह्मणों की । प्रसन्नता का कुछ वर्णन नहीं किया जाता ! वे प्रातःकाल सुसज्जित होकर राजा के पास पहुंचे और कहने लगे कि आपको राम और हनुमान ने ब्राह्मणो के पूर्वाधिकार को दे देने के लिये कहा है इस लिये आप हमें हमारा अधिकार दीजिये। इस पर राजा ने कहा मैं तो तुच्छ मात्र भी नहीं दूंगा आप राम और हनुमान के पास ही. जाइये ? यह सुन ब्राह्मणों ने हनुमान जी के कथनानुसार उनकी ही पुड़िया उसके द्वार पर फेंक दी और स्वयं अपने २ घर को चले गये. बस फिर क्या था चारों तर्फ अग्नि की ज्वालायें ही नजन् (१) अग्रिज्यालाकुलं सर्व संजातं चैव तत्रहि ॥१८॥
दहान्ते राजवस्तूनिच्छत्राणि चमराणि च ।। कोशागराणि सर्वाणि श्रायुधागारमेव च ॥१६॥ महिप्यो राजपुत्राश्च गजा अश्वा हानेकशः । रिमानानि च दहान्ते दहान्ते वाहनानि च ॥२०॥ शिविकाच विचित्रावै रथाश्चैव सहयशः। सर्वत्र दह्यमानं च दृष्ट्वा राजापि विव्यथे ॥२१॥ सर्व तज्ज्वलितं दृष्ट्वा ननक्षपणकास्तदा। धुरवा करेण पात्राणि नीत्वा दण्डान्छुभानपि ॥ रक्तकम्बलिका गृह्य वेपमाना मुहुर्मुहुः । अनुपानहिकाश्चैव नष्टाः सर्वे दिशोदश ॥२५॥ मनष्यश्च विवखास्ते वीतरागामित्रुवन् ॥२७॥ अर्हन्तमेके केचिद पलायनपरायणाः ॥ धावस्मरतिः पश्चारितरचेतश्च वै तहा। पदातिरेकः प्रदन् क विमा इति जल्पकः ॥ . . .