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पुराण और जैन धर्म
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ऊपर लिखे का यथार्थ तात्पर्य और अक्षरार्थ, हमने स्वामी दयानन्द और जैन धर्म" नाम की पुस्तक में लिख दिया है, पाठक वहाँ से ही देखने की कृपा करें वहाँ उनको
और कुछ भी देखने
को मिलेगा ।
[ निष्कर्ष ]
जैन-धर्म से सम्बन्ध रखने वाले जितने भी उल्लेख पुराणों में पाये जाते हैं, उन सब पर सम्यकतया विचार करने से निम्नलिखित बातें प्रकट होती हैं ।
२ - पुराणों के जमाने मे जैन-धर्म विद्यमान था ।
(क) जिस समय पुराणों की रचना हुई है उस समय जैनमत अपनी यौवन दशा में था ।
(स) उस समय में आपस का विरोध कल्पनातीत दशा को पहुँच चुका था ।
२ -- पुराणों में जैन-धर्म की उत्पत्ति के जितने भी लैस हैं वे एक दूसरे से विभिन्न और प्रतिकूल हैं ।
(क) उनमें ऐतिहासिक सत्यता बहुत ही कम है अतएव उन पर अधिक विश्वास करने को मन नहीं कहता !
३- जैन धर्म की उत्पत्ति विपचिक अनेक प्रकार को जो मिथ्या पहनायें प्रचलित हो रही है उनका कारण भी पुरा गठ जैन-धर्म विषयिक लेग्य ही है जैसे
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पुष्प भी गाना ० ० इव पने
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