Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ पुराण और जैन धर्म. सन्यासिनः" टी० कार के कथनानुसार उस समय बौद्ध धर्म के साधु मौजूद थे इस से सिद्ध हुआ कि उस समय बौद्ध धर्म था। बौद्ध मत का प्राविभाव जैन मत के बाद हुआ, यह वात आज निर्विवाद सिद्ध हो चुकी है इसलिये रामायण के समय में भी. जैन धर्मका अस्तित्व इस हेतु से मानना होगा ऐसा हमारा न्याल है: प्रसंगोपात। सिंहजी की जैन मत विषयिणी अनभिज्ञता। बड़े दुःख से कहना पड़ता है कि इस समय साधारण जनता के अतिरिक्त बहुतसा विद्वान वर्ग भी जैन धर्म के कतिपय (जोकि बहुत स्थूल और जानने लायक हैं) सिद्धान्तों से बहुधा अपरिचित ही दिखाई पड़ता है, जिसके कारण किसी समय उनके समझने में बड़ी गोलमाल सी हो जाती है। पाठकों को पंडित उदयनारायण मिह जी के नाम का स्मरण होगा, अथवा उन्होंने सुना होगा, आप मधपुरा-जिला मुजफ्फर नगर के रहने वाले हैं। आपको अन्य प्रन्थों को छोड़ दर्शन प्रन्यो की भाषा पनाने का बड़ा शौक मालूम देता है तदनुसार एक दो दर्शन प्रन्धों की भाषा आपने कर भी डाली है एवं सर्व दर्शन संग्रह का मापानुवाद भी आपकी ही गपा का फल है ! सर्व दर्शन संग्रह में अन्यान्य दर्शनों के साथ कम प्राम जैन दर्शन का भी वर्णन है प्राचार्य प्रवर माधव ने इसमे जैन सिद्धान्तों को बड़ी ही सरलता से समझाया है। जैन धर्म की दिगम्बर और श्वेताम्बर इन दो मुख्य शायरामों में स्यूल

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117