Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 110
________________ •९६. पुराण और जैन धर्मः अन्तर कितना है, इस बात को समझाने के लिये जैन विद्वान मुनि जिनदत्त-सूरि प्रणीत विवेक विजास ग्रन्थ के कतिपय श्लोक उद्धृत किये हैं उनमें का एक श्लोक है नभुक्ते केवली न स्त्री मोक्षमति दिगम्बराः। प्राहुरेषामयं भेदो महान् श्वेताम्बरैः सह ॥१॥ इस श्लोक का सिंहजी ने जो भाषा में अनुवाद किया है वह सचमुच देखने के काविल है और वह इस प्रकार है"अकेला न भोजन करते और नस्त्रीभोगते ऐसा दि० मोक्षको पाते हैं यह भड़ा भेद श्वेताम्बरों के साथ कहा है" __हम नहीं समझते कि सिंह जी ने इस प्रकार का (सर्व दर्शन संग्रह की भाषा टीका करने का ) दुस्साहस क्यों किया? संस्कृत श्लोकों का षष्टी चतुर्थी का अर्थ करना कुछ और बात है तथा उसके सिद्धान्त गत तात्पर्य को समझ कर उसका अनुवाद करना अन्य बात है। सर्व दर्शन संग्रह के इस भाषानुवाद से आपका संसार में बड़ा यश वढ़ा होगा परन्तु इन पंक्तियों (अकेला नभोजन करते इत्यादि) ने उसकी दुर्दशा भी खूब कर डाली। आपकी इस अनभिज्ञता पर बड़ा दुःख होता है। हम आपसे सर्वथा अपरिचित हैं और हमें तो यह भी खबर नहीं कि इस समय आप अपने दर्शनों से नगर निवासियों को अथवा देसवासियों को कृतार्थ कर रहे हैं या किसी स्वर्ग विशेष के विशिष्ट अतिथि बन रहे हैं। अन्यथा हम आप से कुछ न कुछ प्रार्थना किये विना न रहते ।

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