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पुराण, और जैन-धर्म
भाषा में वर्णन है । इसको चन्द्रप्रभसूरि नाम के किसी जैन विद्वान् ने 'विक्रम सम्वत् १३३४ में लिखकर समाप्त किया है उक्त ग्रन्थ में. "वप्पभट्टि" नाम के एक प्रभाविक आचार्य के प्रबन्ध का वर्णन करते. हुए लिखा है कि "विक्रम सम्वत् ८११ के चैत्र मास की कृष्णाष्टमी. के दिन बप्पभट्ट को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया और राजा के मंत्री के अनुरोध से संघ की अनिच्छा होने पर भी गुरु ने. उनको श्रम राजा के पास भेजा " "श्राम महाराजा चन्द्रगुप्त के वंशीय कान्यकुब्जाधीश यशोवर्मा के पुत्र थे इससे सिद्ध.. होता है कि आम राजा विक्रम की आठवीं शताब्दी के अन्त में हुआ, है। तथा स्कन्ध पुराण के "एतच्छ्रुत्वा गुरोरेव कान्यकुब्जाधिपोवली, राज्यं प्रकुरुते तत्र आमो नाम्ना हि भूतले" इस श्लोक में कान्यकुब्जाधीश जिस आम का उल्लेख है यह सम्भवतः वही आम है जिसका कि जिकर "प्रभावक चरित" में आया है और कोई नहीं । अब 'रही कुमारपाल की बात सो उसका समय तो बिलकुल ही निश्चित है कुमारपाल, जैन राजाओं में 'एक आदर्श राजा हुए हैं इनका जन्म विक्रम सं० ११४९ और राज्याभिषेक' ११९९ में हुआ था और १२२३ में इनका स्वर्गवास हुआ।
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(१) एकादशाधिके तत्र जाते वर्ष शताष्टके ।
विक्रमात् सोऽभवत्सूरिः कृष्णचैत्राष्टमी दिने ॥ ११५ ॥ श्रीमदाम महाभूप श्रेष्ठामात्योपरोधत: । श्रन्च्छितोपि संघस्य प्रैषीत्तैः सह तं गुरुः ॥ ११६ ॥ (२) श्रीचन्द्रगुप्त भूपालवंश मुक्तामणिश्रियः ।
कान्यकुब्ज यशोवर्म भूपतेः सुयशींगभूः ॥...... लेखीदाम नामस्वं क्षितौ खटकयाततः ॥४६-४७॥
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