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पुराण और जैन धर्म
म्कन्द पुराण के इस लेग्य से महाराजा आम और कुमारपाल का एक ही समय में होना सिद्ध होता है। आपने अपनी कन्यारत्नगगा का विवाह राजा कुमारपाल से किया यह उल्लेख उक्त कयन की पुष्टि के लिये पर्याप्त है। तया ये दोनों ही राजा वैदिक धर्म के पूर्ण प्रतिपक्षी, अतएव जैन अथवा बौद्ध थे। इसीलिये रामेश्वर को गये हुए बामणों ने हनुमान जी से बर मांगते समय इन दोनों नरपतियों के विषय में हनुमानजी से कहा है कि"यदि तुष्टोसि देवेश ! रामातापालक ! प्रभो ! स्वरूपं दर्शय स्वाध लंकायां यन् कृनं हरे॥ १०॥ तथा विध्वंसयाचवं राजानंपापकारणं, दुष्टं कुमारपालं हि श्रामं चैव न संशयः ॥११॥ अ.२७ । अर्थात् हे प्रभो ! यदि आप हमारे ऊपर प्रसन्न हुए हैं तो अपना लंका वाला स्वरूप दिखाइये और पापी दुष्ट कुमारपाल
और आम का विनाश करिये ? परन्तु इतिहास कथन के सर्वथा विरुद्ध है। महाराजा आम और कुमारपाल का जैन होना तो इनिहास से सिद्ध है परन्तु उनके समय में बड़ा अन्तर है। जैन के ऐतिहासिक प्रन्यों में प्राम राजा का जिकर आया है और कुमारपाल का तो विशेष रूप से उल्टोव है मगर ये दोनों भिन्न २ समय में हुए हैं। "प्रभावक चरित" नाम का एक प्रसिद्ध जैन-मन्य है उसमें बहुत से प्रभाविक आचारों का बड़ी ही मुबोध और सरम (सन्हन)
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___ * इस कथन मे
माना कि उन पर (निम बस यह रोत या गया) जैन पौर और हि पापियों का पारिस. गिर भरनी सीमा को गुन हनन पर पुरा रोगा।