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पुराण और जैन धर्स का कहीं पर भी जिकर नहीं। इससे सिद्ध हुआ कि जैन-मत की उत्पत्ति महाभारत एवं रामायण काल से बहुत पीछे हुई है । तथा आपका यह भी कथन है कि "मूर्ति पूजाका आरम्भ जैनों से हुआ" जैनों से पहले मूर्ति पूजा का संसार में प्रचार नहीं था इत्यादि ! आपकी असली इबारत इस प्रकार है
[वाल्मीकीय और महाभारतादि में जैनियों का नाम मात्र भी नहीं लिखा और जैनियो के ग्रन्थों में बाल्मीकीय और भारत कथित "राम, कृष्णादि" की गाथा बड़े विस्तार पूर्वक लिखी है इससे यह सिद्ध होता है कि यह मत इनके पीछे चला क्योंकि जैसा अपने मत को बहुत प्राचीन जैनी लोग लिखते हैं, वैसा होता तो बाल्मी-- कीय आदि ग्रन्थों में उनकी कथा अवश्य होती इसलिये जैन-मत इन प्रन्थों के पीछे चला है। कोई कहे कि जैनियों के ग्रन्थों में से कथाओं को लेकर वाल्मीकीय आदि ग्रन्थ बने होंगे तो उनसे पूछना चाहिये कि बाल्मीकीय आदि में तुम्हारे प्रन्थों का नाम लख भी क्यों नहीं ? और तुम्हारे ग्रन्थों में क्यों है ? क्या पिता के. जन्म का दर्शन पुत्र कर सकता है ? कभी नहीं। इससे यही सिद्ध होता है कि जैन, बौद्ध-मत शैव, शाक्तादि मतों के पीछे चला है ।। सत्यार्थ प्रकाश अनुभूमिका पृट ३९५।] पापाणादि मूर्ति पूजाः की जड़ जैनियों से प्रचलित हुई । स० प्र० पृ०२८५] इत्यादि। समालोचकः
पाठकगण स्वामीजी के कथन को आपने सुन लिया ? उसके अनुसार रामायण और महाभारत में मूर्ति-पूजा का भी.