Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 104
________________ पुराण और जैन धर्म जो लोग स्वामीजी के कथन को वेद वाक्य के समान समझते हुए उस पर सन्देह उठाना पाप समझते हैं उन भद्र पुरुषों के लिए रास्ता बहुत खुला है, वे महानुभाव बिना संकोच कह उठेंगे कि अव्वल तो रामायण और महाभारत में मूर्ति पूजा का वर्णन ही नहीं, यदि कहीं पर उसका जिकर भी हो तो वह प्रक्षिप्त है । किसी स्वार्थी ने उसे पीछे से मिला दिया है। इसलिए स्वामीजी के कथन में किसी प्रकार के विरोध की आशंका करना निरी भूल है ! पाठकगण ! ऐसे सत्पुरुषों के सम्बन्ध मे कुछ कहना सुनना व्यर्थ है। . . यस्यनास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य कराोतकिम् । लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ॥ . जहाँ तक हमारा विश्वास है रामायण और महाभारत में मूर्ति सूजा का सम्बन्ध वर्णन अवश्य है * परन्तु उसे प्रक्षिप्त ठहरा कर (१) वा० मी० रामायण उत्तर काण्ड यत्र यत्र च यातिस्म रावणो राक्षसेश्वरः । जम्बुनदमयं लिंग तत्र तत्र स्म नीयते ॥१॥ वालुका वैदिमध्येतु तल्लिंग स्थाप्य रावण । अचंयामास गन्धैश्च पुष्पैशास्तगन्धिभिः ॥२॥ ((0) महाभारत वि० पर्व अ०७४ ततोरमभिश्व प्रतिमा कारयित्वाहिभक्तिन. । शुभूपिप्यन्ति ये नित्यं, मम यास्यन्ति ते गतिम् ॥ ५१ ॥ पापाणैः प्रतिमा तात, कारयित्वाच कौरव । शुभ्रपन्ति कृतात्मानो, विन्णुलोकाभिकांदिणः ॥ ५२ ॥

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