Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ #m ર • पुराण और जैन धर्म धर्म पूर्वक पालन किया । परन्तु तुम्हारा जामाता - कुमारपाल - अब ब्राह्मणों का पालन नहीं करता ? यह सुन आम ने ब्राह्मणो से कहा कि आप जाकर मेरी तर्फ से महाराजा कुमारपाल को कहिये कि ब्राह्मणों को उनका पूर्व अधिकार दे दो । ब्राह्मणों ने आकर महाराजा ग्राम की आज्ञा को कुमारपाल से निवेदन किया । उन ब्राह्मणो के द्वारा अपने श्वसुर के वचन को सुनकर राजा कुमारपाल बोले कि मैं राम के शासन का पालन नहीं करूंगा, यज्ञादि में हिंसा, करने वाले ब्राह्मणो का त्याग करना ही उचित है, इसलिये हिंसकों में मेरी श्रद्धा नहीं ? यह सुन ब्राह्मण समुदाय ने कहा कि राजन् ! पाखंड धर्म में प्रवृत्त होकर ब्राह्मणों के शासन का क्यों लोप कर रहे हो ? आप अपनी बुद्धि को पापमें मत लगाइये ? ब्राह्मण समुदायका यह कथन सुन कुमारपाल ने कहा कि, अहिंसा ही परम धर्म है, हिसा ही परम मत है तथा अहिसा ही परम ज्ञान और उत्तम ब्राह्मणा ऊचुः कथ पाखंडधर्मेण लुप्तशासनको भवान् । पाल्यस्य नृपश्रेष्ठ मास्म पापे मन क्रथाः ॥ ६३ ॥ राजोवाच- -हिसा परमोधर्मः हिसा च परं तपः । श्रहिंसा परमं ज्ञानमहिसा परमं जलम् ॥ ६४ ॥ तृणेषु चैव वृक्षेषु पतंगेषु नरेषु च । कीटेषु मत्कुणाद्य श्रजाश्वेषु गजेषु च ॥ ६५ ॥ वृतासु चैव संपपु महिप्यादिषु वै तथा । संतः सःशा विप्रा सूक्ष्मेषु महत्सु च ॥ ६६ ॥ कथं यूय प्रवर्तध्ये विप्रा हिंसा परायणाः । तच्छ्रुत्वा वज्रतुल्यं हि वचनं च द्विजोत्तमाः ॥ ६७ ॥ प्रत्यूचुर्वाड़वाः सर्वे क्रोधरक्तेक्षणादृशा ॥ ६८ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117