Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 88
________________ ७४ पुराण और जैन मंध अभी तक वह अविवाहिता है। किसी दासी के द्वारा इन्द्रसूरि राजकुमारी से मिले औरशावरी मंत्र के प्रभाव से उन्होंने राजकुमारी को अपने वश में करके उसे जैन धर्म में अनुरक्त कर दिया । पश्चात् आम राजा ने उसे ब्रह्मावत के अधिपति कुम्भीपाल राजा के साथ उसका विवाह कर दिया और मोहेरक नाम का स्थान उसके दहेज में दे दिया। कुम्भीपाल ने अपनी राजधानी मोहेरक मे बनाई और वहां पर ही जैन धर्म के पूज्य देवो की स्थापना की । अन्य सब लोग भी जैन धर्म के अनुयायी होने लग गये। अब न तो कोई ब्राह्मणों का ही सत्कार करता है और न शान्स्यादि कमों का ही अनुष्ठान होता है तथा न कोई दान ही देता है । न ददाति कदा दानमेवं कालः प्रवर्तते ।। लव्यशासनका विमा लु नवाग्या अहर्निशम् ॥ ४ ॥ समाकुलितचित्तास्ते नृपनानं समाययुः । कान्यकुब्जस्थितंशूरं पाखएई. परिवेटितम् ॥ ४ ॥ चारैश्च कथितास्ते च नृपस्याग्रे समागताः । प्रातराकारिता विप्रा आगता नृपससदि ॥ ५० ॥ प्रत्युत्थानाभिवादादी न चक्रे सादरंनृपः । तिटतो ब्राह्मणान् सर्वान् पर्यपृच्छदसो ततः ॥ ५१ ॥ किमर्थमागता विषा किंधित कार्य ब्रुवन्तु तः ॥ ५२ ॥ विप्रा ऊचुःयारण्यादिहायाता स्वत्समीपं नराधिप । गजन् तब सुतायास्तु भर्ता कुमारपालक ॥ ५३ ॥ तेन पलुप्तं विप्राणां शासनमहदद्भुतम् । वर्तता जैनधर्मेण प्रेरितेनेन्द्र सृरिणा ॥ ५५ ॥ राजोवाच:-केन वै स्थापिताः यूयंमा स्मिन्मोहेरके पुरं। एतदि बाड़वाः सर्व चूने वृत्तं यथातथम् ॥ ५५ ॥

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