Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 91
________________ पुराण और जैन धर्म फल है। तृण,वृक्ष,कीट, पतंग, पशु, पक्षी, और मनुष्यादि सब प्रकार + के छोटे बड़े प्राणियों में एक जैसा ही जीवात्मा विराजमान है । तिन पर भी न जाने श्राप लोग क्यों हिंसा में प्रवृत हो रहे हैं। कुमार. पाल के इम बत्र तुल्य कथन को सुनकर लाल नेत्र किये हुए ब्राह्मण वर्ग बोला कि-राजन यापन अहिना को जो परम-धर्म बतलाया है मो यद्यपि ठीक है नथापि आर धर्म के मर्म को एकाग्र चिन होकर मुनी ? वेद में जिनका विधान किया गया है वद हिना नहीं प्रत्युन अहिंसा ही है शत्र में वर करने पर जोर को दु.य हाता है, यान यही (शस्त्र वृय करना) अधर्म है मगर गव के बिना वेद मंत्रों के द्वारा जो पशु वध किया जाता है वह दुस प्रद नही बल्कि वध्य जीव का सुस के देने वाला होता है। पर उप. • कार पुएप घोर पर-पीड़न पाप लिये है । अतः चंद विहित हिमा का 'प्राचरण करता हुआ मनु य पानी में लिव नहीं होता! इन्यादि बहुत सुन बाद विवाद हान के अनन्तर निगश होकर बटुन में आमणों ने प्ररने कार्य की सिद्धि के लिय रामेश्वर को प्रधान किया। यहा उनको ब्राह्मण रूप में हनुमान जा के दर्शन हुर । ब्रामण वर्ग की सतत प्रार्थना से प्रसन्न होकर हनुमान जा ने उन को अपने अन्य रूप में दर्शन दिया और अपना याई तथा दाई कना (कन्छ ) के बालों (रोम) की दो पुड़िय देकर कहा कि ला यदि वा राजा प्राप को प्रातानुसार काम न करे तो इन बाई पुलिया को उसके द्वार पर फेंक देना इनके फैको ही उमका सभी कुटशिमात-जलकर भस्म होने लगेगा। और यदि उनके शान्न तथा पुनाजीविन फरने की आवश्यकता पड़े नो ममरी पुड़िया

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