Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 72
________________ पुराण आर जन धम - - - - काम का नहीं ॥रा पांच कर्मेन्द्रिय, पांच ज्ञानेन्द्रियमन पार बुद्धि यही द्वादश आयतन स्थान हैं ॥२७॥ प्राणिमात्र के लिये स्वर्ग और नरक यही पर है और कहीं नहीं, सुख का ही नाम स्वर्ग और दुःख का नरक है ॥२८॥ सुख भोगते २ यदि देह छूट जाय तो इसी का नाम तत्वचिन्तकों ने परम मोक्ष कहा है ।।२९॥ जिस समय वासना सहित सब क्लेश नष्ट हो जाय, अज्ञान का नाश हो जाय, तत्व चिन्तकों ने इसी को मोक्ष माना है ॥३०॥ वेदवादी इस श्रुति को प्रमाण में देते हैं कि, किसी प्राणी की हिंसा न करनी चाहिये, "किसी की हिंसा में प्रवृत्ति न हो ॥३१॥ जो अग्निष्टोम में पशु का 'पालम्भन-वध है वह भ्रम की बात है । यह कथन असत्पुरुषों का है, ज्ञानी पुरुषों को पशु का वध स्वीकृत नहीं ॥३२॥ वृक्षों को छेदन कर, पशुओं को मार कर और रुधिर का कीचड़ कर तथा घी ओर तिलों को अग्नि में डाल कर स्वर्ग की इच्छा करना बड़ी ही विचित्र वात है ॥३४॥ इस प्रकार उस यतिराज ने उस असुर नायक तथा अन्य त्रिपुर निवासियों को अपना यह सिद्धान्त सुना कर फिर कहा कि प्रत्यक्ष अर्थ में ही विश्वास होना चाहिये, यही एक मात्र देह सुख के साधक हैं, यह धर्म वेद से परे और बौद्ध शाखों में निर्दिष्ट हुए हैं ॥३५॥ आनन्द ही ब्रह्म का रूप है, ऐसा जो श्रुति में कहा गया है वह वैसा ही मानना चाहिये, नानात्व कल्पना व्यर्थ है ॥३६|| जब तक यह शरीर स्वस्थ है, जब तक ‘इन्द्रिय निर्वल नहीं हुई, जब तक वृद्धावस्था दूर है तब तक सुख के साधन को प्राप्त करना चाहिये ॥३७॥ जिस समय इन्द्रियां

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