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पुराण और जैन धर्म लिए आवश्यक है ? हमारे ख्याल में तो इस प्रकार के विरोधों की - उपस्थिति और उसकी संगति के लिए अनेक प्रकार की वाधायें
तभी हमारे सामने उपस्थित होती हैं जब कि हम इस प्रकार के परामर्श के लिए ऐतिहासिक दृष्टि को अपने सामने रखते हैं, नहीं तो धार्मिक दृष्टि के सामने इस प्रकार के विरोधी को पूछता ही कौन है ? वढ़े हुए धार्मिक दृष्टि रूप नदी के प्रचण्ड वेग में तो शंकाओं के बड़े २ पहाड़ भी वह जाते हैं तो फिर एक मामूली से विरोध रूप एक क्षुद्र तृण की तो गणना ही व्यर्थ है। अतः विष्णु पुराण के उक्तलेख मे विरोध देखने वाले सज्जनों को ऐतिहासिक छष्टि की जगह धार्मिक दृष्टि से काम लेना चाहिये ! बस धार्मिक चष्टि के सामने आते ही सब विरोध काफूर हो जावेगे। सज्जनो! धार्मिक दृष्टि कोई बुरी चीज़ नहीं, धार्मिक दृष्टि मनुष्य जीवन का सर्वोत्तम गुण है, धार्मिक विश्वास मनुष्य के लिए उतनाही उपयोगी है जितना कि धूप मे मुझोये हुए एक छोटे से पौदे के लिये जल । इसलिये जिस जीवन में धार्मिक विश्वास नहीं वह नीरस है, शुल्क है और निकम्मा है ! अतः हमारा कटाक्ष धार्मिक दृष्टि पर नहीं किन्तु उसकी निर्यादता और दुरुपयोगिता पर है। आशा है कि सहृदय पाठक इतने ही में हमारे असली अभिप्राय को समझ गये होंगे ?
विष्णु पुराण के उक्त लेख का समय] विष्णु पुराण की रचना किस समय में हुई इस बात का यद्यपि अभी तक कुछ निश्चय नहीं हुआ और न इसका यथावत निर्णय होना कुछ शक्य ही प्रतीत होता है, तथापि उक्त लेख के