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पुराण और जैन धर्म
- का ध्यान पूर्वक अवलोकन करने से जान पड़ता है कि जैन धर्म के प्रचारक साक्षात विष्णु भगवान ही हैं दूसरा कोई नहीं ?
(२) श्रीमद् भागवत में अर्हन् राजा के जैन होने और जैन-धर्म का प्रचारक बनने का मूल कारण ऋषभावतार की शिक्षा और चरित्र को बतलाया है मगर विष्णु पुराण में इस बात का जिकर तक नहीं । एवं आग्नेय पुराण में लिखा है कि विष्णु भगवान ने प्रथम बुद्ध के अवतार को धारण कर बौद्ध-धर्म का उपदेश दिया ओर बाद में आई जिन बनकर जैन धर्म का प्रचार किया । तात्पर्य कि अग्नि पुराण के कथनानुसार वौद्ध धर्म के बाद जैन-धर्म का होना सावित होता है । परन्तु विष्णु पुराण का लेख इससे उलटा है अर्थात् उसके अनुसार जैन धर्म के अनन्तर वौद्ध-धर्म का होना प्रतीत होता है । अत्र इन कथनों की संगति किस प्रकार लगाई जा सके यह हमारी तुच्छ बुद्धि से बाहर है, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि इस प्रकार के लेख महर्षि पुंगव भगवान् वेद व्यास के नाम को तो कुछ न कुछ अवश्य लांछित करते हैं । अतः विद्वानों को उचित हैं कि वे इस विनय पर अवश्य प्रकाश डालें ? |
[विष्णु पुराण के लेख में विचित्रता ]
हमारे पाठकों ने जैन धर्म विषयक श्रीमद्भागवत और अग्निपुराण के कथन का अवलोकन कर लेने के बाद, विष्णु पुराण के उस लेख को भी पढ़ लिया है जोकि जैन धर्म की उत्पत्ति और विषय से संबन्ध रखता है। तथा इनमें परस्पर जो विरोध है उसका भो दिग्दर्शन ऊपर के लेख में करा दिया गया है अत्र मात्र विष्णु पुराण