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पुराण और जैन धर्म अनेक प्रकार की उक्ति-युक्तियों से भरे हुए वचन, जैसे २ उन-दैत्योंको सुनाता गया, वैसे २ वे अपने धर्म का परित्याग करते गये। जिन असुरों ने अपने धर्म को त्याग दिया, वे अन्यों को उपदेश करने लगे अन्य औरों को, इसी तरह हे मैत्रेय ! बहुत से दैत्यों ने वेद विहित धर्म को त्याग दिया। तथा उस मायामोह ने बहुत प्रकार के अन्यान्य पाखण्डों के उपदेश द्वारा अन्य असुरों को भी मोह लिया, जिससे थोड़े ही समय में मायामोह द्वारा मोहित हुए असुर लोग वेदोक्त धर्म को सर्वथा त्याग बैठे। उनमें से बहुत सं तो वेदों की निन्दा करने लग गये और बहुत से देवों की, तथा कितने, एक यज्ञ कर्म कलाप और कई एक ब्राह्मणों की निन्दा में प्रवृत्त हो गये । जैसे कि-यह वेदोक्त कथन युक्ति सह नहीं, और. वेदोक्त हिसा धर्म के लिये नहीं हो सकती, अग्नि में डाले हुए हविः का स्वर्गादिपल होता है यह कथन बालकों के कथन के समान है। अनेक यज्ञों के अनुष्ठान द्वारा देवत्व को प्राप्त हुआ इन्द्र यदि शमि आदि काष्ठ का भक्षण करता है तो, उससे पत्रभोजी पशुही श्रेष्ट है। यदि यज्ञ में मारे हुए पशु को स्वर्ग मिलता है तो यजमानः ( यज्ञ कर्ता) अपने पिता को ही यज्ञ में क्यों नहीं मार डालता ? यदि श्राद्ध में एक मनुष्य का खाया हुआ भोजन, दूसरे को तृप्त कर देता है तो मुसाफिरो को साथ में खाना उठाने की क्या श्रावश्यकता ? क्योकि उसके नाम से घर में किसी दूसरे को खिला देने से ही उसकी तृप्ति हो जायगी। ।। १५-२८ ॥
इस प्रकार, अनेक तरह की उक्तियों द्वारा मायामोह ने उन असुर लोगों को ऐसा बना दिया कि उनमें से किसी की भी श्रद्धारा