________________
२८
पुराण और जैन धर्म है । इसलिये आप लोग जाओ, किसी प्रकार का भय मत करो.।। आपके उपकारार्थ यह "मायामोह"आपकेसाथ जाताहै।४१-४४||
इस प्रकार विष्णु ने जब उनको समझाया तब सभी देवगण उनको प्रणाम कर अपने २ स्थान को चले और “मायामोह" भी उनके साथ हो लिये । वे सब वहां आ पहुंचे जहां पर असुर लोग तप कर रहे थे। ___पाराशर जी कहते है हे मैत्रेय ! नर्मदा के किनारे पर तपस्या में लगे हुए असुर लोगों को मायामोह ने आकर देखा और शरीर से नग्न, सिर मुडा हुआ और हाथ में मोर पंखी लिये हुए, बड़े मधुर स्वर से "मायामोह" ने उन दैत्य लोगो से कहा कि, हे दैत्य लोगो! आप यहां किस लिये तप कर रहे है ? आपको ऐहिकः इस लोक में होने वाले] फल की इच्छा है वा पारलौकिक [पर लोक मे होने वाले] पल की अभिलाषा है ? यह सुन असुरो ने कहा कि हमने यह तपश्चर्या, पारलौकिक फल की इच्छा से प्रारम्भ की है, आप कहे श्रापको इस में क्या वक्तव्य है ? इस पर"माया-- मोह" ने कहा कि यदि आपको मोक्ष की इच्छा है तो आप मेरे कथन को मानो ? आप लोग इस (आहत-जैन) धर्म का सेवन करो। यह धर्म मोक्ष का खुला दरवाजा है । मुक्ति के लिये इसके बढ़कर और कोई धर्म नहीं । इसी धर्म मे आरूढ़ हुए आप लोग स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त कर सकोगे ? इसलिये आप इसी धर्म का अनुष्ठान कीजिये । इस प्रकार अनेक युक्तियों द्वारा “मायामोह"" ने उन दानवो को वेद मार्ग से.पराड्मुख कर दिया। जैसे कियह धर्म के लिये है और अधर्म के लिये भी । यह वस्तु सत् है।