Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 64
________________ ५० पुराण और जैन धर्म सनकुमार उवाचइत्थमाभाष्य दैत्येशं पौरांश्च स यतिर्मुने । सशिष्यो वेदधर्माश्च नाशयामास चादरात् ॥४॥ स्त्रीधर्म खंडयामास पातिव्रत्यपरं महत् । जितेन्द्रियत्वं सर्वेषां पुरुषाणां तथैव सः ॥५०॥ देवधर्मान् विशेषेण श्राद्धधर्मास्तथैव च । मखधर्मान् व्रतादींश्च तीर्थश्राद्धं विशेषतः ॥५१॥ शिवपूजां विशेषेण लिंगाराधनपूर्विकाम् | विष्णुसूर्यगणेशादिपूजनं विधिपूर्वकम् ॥५२॥ स्नानदानादिकं सर्वं पर्वकालं विशेषतः । खंडयामास स यतिर्मायी मायाविनांवरः ॥५३॥ । विवहूक्तेन विप्रेन्द्र त्रिपुरे तेन मायिना । वेदधर्माश्च ये केचित्ते सर्वे दूरतःकृताः ॥५४॥ [रुद्र सं० २ युद्ध खं०५ अध्या० ४-५] बंगाली आवृत्ति 'शिव पुराण' वंगवासी इलेक्ट्रो मशीन प्रेस मुद्रित ज्ञान सं० अ० २१-२२ पृ० ८० । भावार्थ-सनत्कुमार कहने लगे कि हे ऋपि! तव महा तेजस्वी विष्णु ने उन दैत्यों के धर्म में विघ्न डालने के लिये अपनी माया से शिरसे मुंडित, मलीन वस्त्र पहनेहुए, काष्ठ के पात्र और पुंजिका रजोहरण हाथ में रखते हुए, पदपद पर उसे चलायमान करते हुए

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