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पुराण और जैन धर्म
३६ वेदोक्त धर्म पर न रही । इस प्रकार नब सब दैत्य लोग सन्मान छोड़, कुमार्ग गामी हो गये तब देवताओं ने पुनः युद्ध के लिये उद्योग किया और असुरों के साथ फिर से उनका बड़ा भारी युद्ध हुआ । परन्तु इस वक्त [स्वधर्म द्वेपी और कुमार्ग सेवी] अमुरो का देवों ने जीत लिया। अर्थात् इस समय के देवासुर संग्राम में अमरों की हार और देवों की जीत हुई।
थालोचक-पाठको ने विष्णु पुराण की जैन-धर्म विपरिणी उक्ति को सुनलिया । इसका संक्षिप्त सार यही है कि, विष्णु भगवान ने अपने शरीर से उत्पन्न किये मायामोह नाम के एक पुरुष विशेष द्वारा जैन और बौद्ध धर्म का उपदेश दिलाकर असुर लोगो ने बंद विहित यन यागादि धर्मों का परित्याग करा दिया। वेदोक्त मार्ग का परित्याग कर देन से असुर लोग निर्बल हो गये, अतः दूसरी बार के युद्ध मे देवताओं ने उनको जीत लिया। [विष्णु पुराण के लेखका भागवत और आग्नेय.
पुराण से विरोध] विष्णु पुराण के उक्त लेख की श्रीमद्भागवत और आग्नेय पुराण के पूर्वोक्ति लेखों के साथ तुलना करते हुए बहुत कुछ विरोध मालूम पड़ता है।
(१) श्रीमद् भागवत में जैन धर्म का प्रवर्तक कोई बहन नाम का राजा बतलाया है वह भी भागवत के निर्माण काल में प्रथम नहीं किन्तु बहुत समय पीछे जयफि घोर कलियुग का समय होगा इस प्रकार भविप्य वारणी की घोपणा की है परन्तु विष्णु पुराण