Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 34
________________ २० . पुराण और जैन धर्म और तो कुछ नहीं मगर गुम महोदय जैसे सत्य-प्रेमी और निष्पक्ष सुलेखकों को लेखिनी के यह अनुरूप प्रतीत नहीं होता। ____एक इतिहास लेखक सन्जन तोवहॉ तक आगे बढ़े हैं कि उन्होंने जैन धर्म को बौद्ध-धर्म को शाखा बतलाते हुए, गौतम बुद्ध को ही(जैनों के अन्तिम तीर्थङ्कर)महावीर स्वामी के नाम से उल्लेख किया है । तथाहि (बौद्ध धर्म भारतवर्ष से बिलकुल ही निर्वाचित नहीं हो गया। वर्तमान पौराणिक धर्म पर उसने जो प्रभाव डालाहै वह कुछ कम नहीं, अपने पीछे उसने एक विशेष सम्प्रदाय को छोड़ा जो जैन नाम से अब तक भारतवर्ष में प्रचलित है । लगभग १५ लाख जैन इस समय इस देश में पाये जाते हैं। ......... ....... भारतवर्ष के जैन प्रायः सौदागर वा साहूकार हैं। उनका सिद्धान्त है कि जैन धर्म बौद्ध धर्म से भी पुराना है और बुद्ध की शिक्षा का आधार जैन मत ही था । परन्तु भारत के ऐतिहासिक निरीक्षण से यही पता चलता है कि बौद्ध और जैन धर्म वास्तव मे एकही हैं और गौतमबुद्ध जैन धर्म में महावीर स्वामी के नाम से परिचित हैं।) भारतवर्ष का सच्चा इतिहास पृष्ट २०८] ' हमारे विचार में इस प्रकार के संराय और भ्रम के प्रचलित होने का कारण भी पुराण ग्रन्थों में, जैन धर्म विपयिक किये गये (१.) लेखक रघुवीरशरण डबलिस, मिलने का पता मैनेजर भास्कर प्रेस मेरठ शहर। पाठकों को स्मरण रहे कि यह दशासच्चे इतिहास की है। अगर कहीं सच्चा न होता तब तो ईश्वर जाने इसमें क्या क्या लिखा जाता। भगवान ऐसे इतिहास लेखकों का भला करें।

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