Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 14
________________ गमने आयेगा और तटस्य संसार उसके महत्त्व को अच्छी तरह ने समझने के योग्य होगा। किसी धर्म या सम्प्रदाय का इसलिये तिरस्कार कर देना कभी उचित नहीं कि उसके विचारों से हमारे विचार भिन्न हैं किन्तु उसके विचारों को मनन करके अपने विचारों के साथ उनकी मध्य धभाव से तुलना करनी और तुलना करके उचित विचारों को अपनाना ही एक तटस्थ विद्वान के प्रशस्त जीवन का मुख्य उद्देश होना चाहिये। अन्त में सज्जनो से प्रार्थना है कि वे हमारे इस अल्प प्रयास का किसी न किसी रूप में सहयोग करने की ही कृपा करें। -विनीत हंस। .

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