Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ पुराण और जैन धर्म १५ कि तुम विदेश में जाकर मर गये हो । मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हारे जिन्दा होने पर भी अब कुछ नहीं कर सकता क्योंकि मिसल कहती है कि तुम मर गये ? अतः विवश होकर मुझे तुम्हारा मुकदमा खारिज करना पड़ता है । बस यही दशा इन धर्म प्रेमियों की है जिनके विचारों का उल्लेख हमने ऊपर किया है परमात्मा ऐसे सज्जनों को सुमति दे। (भागवत के उक्त लेख पर प्रकारान्तर से विचार) श्री मद्भागवत में जैन धर्म की जिस प्रकार से उत्पत्ति वतलाई गयी है वह यद्यपि इतिहास से सर्वथा विरुद्ध अतएव अप्रमाणिक प्रतीत होती है तथापि एक ऋषि प्रणीत अन्य के उल्लेख को किसी इतिहास के आधार पर मिथ्या ठहरा देना उचित नहीं क्योंकि इस से श्रद्धादेवो का बड़ा अपमान होता है ! इसलिये ऐतिहासिक मार्ग को छोड़ कर भागवत और उसके समतोल अन्य पुराण ग्रन्थों से ही उक्त लेख की मीमांसा करनी हमारे ख्याल में ठीक होगी। ___ रेवा खण्ड में लिखा है कि "अष्ठा दशपुराणानां वक्ता सत्यवतीसुतः" अठारह पुराणों के वक्ता व्यासदेव हैं। यदि यह कथन सत्य है तब तो अन्यान्य पुराणों का कथन भी भागवत के उल्लेख के समान ही हमें मान्य है एवं अन्य पुराण अन्य भी भागवत की तरह ही हमारे धर्म प्रन्य और विश्वाल भूमी होसकते हैं। यदि ऐसा ही है तब तो भागवत के उक्त लेख की जांच पुराणान्तर से करनी चाहिये अर्थात् पुराणान्तर में जहां जैन मत की उत्पत्ति का जिकर किया है उसकी तुलना भागवत के उक्त लेख से

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117