Book Title: Prayaschitt Vidhan
Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya

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Page 9
________________ । xxxxxxxxxxxx (४) विवेक प्रायश्चित्त - संसक्त हुए अन्न पान और उपकरण आदि का विभाग करना विवेक प्रायश्चित्त है। (५) व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त - कायोत्सर्ग आदि करना व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त है। (६) तपादित - सन्शा, बौदर्य अपि करना तप प्रायश्चित्त है। (७) छेद प्रायश्चित्त - दिवस पक्ष और महीना आदि की प्रषज्या (दीक्षा) छेद करना छेद प्रायश्चित्त है। (८) परिहार प्रायश्चित - पक्ष महीना आदि के विभाग से संघ से दूर रखकर त्याग करना परिहार प्रायश्चित्त है। (९) उपस्थापना प्रायश्चित्त - पुनः दीक्षा का प्राप्त करना उपस्थापना प्रायश्चित्त है। इन प्रायश्चित्त ग्रन्थों का मूलतः अधिकार आचार्य परमेष्ठी को ही है और आचार्य के भेद एवं लक्षण शास्त्रों में इस प्रकार है कि आचार्य - साधुओं को दीक्षा शिक्षा दायक, उनके दोष निवारक तथा अन्य अनेक गुण विशिष्ट संघ नायक साधु को आचार्य कहते हैं। बीतराग होने के कारण पंच परमेष्ठी में उनका स्थान है। इनके अतिरिक्त गृहस्थियों को धर्म कर्म का विधि विधान कराने वाला गृहस्थाचार्य है। पूजा-प्रतिष्ठा आदि कराने वाला प्रतिष्ठाचार्य है । संलेखनागत क्षपक साधु की चर्या कराने वाला निर्धापकाचार्य है। इनमें से साधु रूप धारी आचार्य ही पूज्य है अन्य नहीं। इन आचार्य परमेष्ठी का ओर भी उल्लेख पाया जाता है जिसे आगम से जानना चाहिए - आचार्योऽनादितो रूढेर्योगादीप निरुच्यते। पञ्चाचार परेभ्यः स आचारयति संयमी ।। ६४५ ।। - पंचाध्यायी/उत्तरार्ध अपिछिन्ने व्रते साधोः पुनः सन्धानमिच्छतः । तत्समादेशेदानेन प्रायश्चित्तं प्रयच्छति ॥६४६॥ - पंचाध्यायी/उत्तरार्ध सजाrma. xxx. प्रायश्चित विधान - ८

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