Book Title: Prayaschitt Vidhan Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya View full book textPage 8
________________ - - पगारासाम्पमापागा The other i.e. Internal, ausrerities are also 6 - १. प्रायश्चित्त (Expiation). २. विनय (Reverence). ३. वैयावृत Service (of the saints or worthy peoplc). ४. स्वाध्याय (Study). ५. व्युत्सर्ग (Giring up attachment to the body etc), ६. ध्यान (Concentration). प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान यह छः प्रकार का आभ्यन्तर तप है। इन छ: प्रकार की तपस्या करने से कर्मों की निर्जरा होती है। ऐसा आगम में कहा है और सूत्र भी इस प्रकार है "तपसा निर्जरा " - आचार्य उमास्वामी, तत्वार्थ सूत्र जिन्हें मोक्षमार्ग इष्ट है वे ही इस तपस्या को स्वीकार करते हैं क्योंकि अपनी गलतियों को स्वीकार करके उसका प्रायश्चित्त और पश्चाताप करना इससे कोई बड़ा तप नहीं है। इस तप के नौ भेद हैं वे इस प्रकार हैं - आलोचना, प्रतिक्रमण, सदुभव, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहार और उपस्थापना यह नव प्रकार का प्रायश्चित्त है। (१) आलोचना - गुरु के निकट (समक्ष) दश दोषों को टालकर अपने प्रमाद का निवेदन करना है। (२) प्रतिक्रमण - 'मेरा दोष मिथ्या हो' गुरु से ऐसा निवेदन करके अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना प्रतिक्रमण है। (३) तदुभय प्रायश्चित्त - आलोचना और प्रतिक्रमण इन दोनों का संसर्ग होने पर दोषों का शोधन करना तदुभय प्रायश्चित्त है। प्रायश्चित्त विधान - ७Page Navigation
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