Book Title: Prayaschitt Vidhan
Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya

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Page 6
________________ ד 1 न ᄏ इ ब T 7 ! न | •• 4y = <Z< इस स्याद्वाद के प्रकाश मे अन्य एकान्त धारणाओं के मध्य मैत्री उत्पन्न की जा सकती है। स्वामी समन्तभद्र की आप्तमीमांसा में समन्वय का मार्ग विस्तृत रीति से स्पष्ट किया गया है। स्याद्वाद के वज्रमय प्रासाद पर जब एकान्तवादियों का शस्त्र प्रहार अकार्यकारी हुआ, तब एक तार्किक जैन धर्म के करुणा तत्व का आश्रय लेते हुए कहता है, दया प्रधान तत्वज्ञान का आश्रय लेने वाला जैन शासन to अन्य संप्रदायवादियों की आलोचना करता है, तब उनके अंतः करण में असह्य व्यथा उत्पन्न होती है, अतः आपको क्षणिकादि तत्वों की एकान्त समाराधना के दोषों का उद्भावन नहीं करना चाहिए । यह विचार प्रणाली तत्त्वज्ञों के द्वारा कदापि अभिनंदनीय नहीं हो सकती । सत्य की उपलब्धि निमित्त मिथ्या विचारशैली की सम्यक आलोचना यदिन की जाय तो भ्रान्त व्यक्ति अपने असत्पथ का क्यों परित्याग कर अनेकान्त ज्योति का आश्रय लेने का उद्योग करेगा ? अनेकान्त विचार पद्धति की समीचीनता का प्रतिपादन होते हुए कोई मुमुक्षु इस भ्रम में पड़ सकता है कि सम्भवतः उसका इष्ट एकान्त पक्ष भी परमार्थ रूप हो, अतः वह तब तक सत्पथ पर जाने की अन्तः प्रेरणा नहीं प्राप्त करेगा, जब तक उसकी एकान्त पद्धति की त्रुटियों का उद्भावना नहीं किया जाएगा । अहिंसा की महत्ता बताने के साथ हिंसा से होने वाली क्षतियों का उल्लेख करने से अहिंसा की ओर प्रबल आकर्षण होता है। अतः परमकारुणिक जैन महर्षियों ने अनेकान्त का स्वरूप समझाते हुए एकान्त के दोषों का प्रकाशन किया है। जीव का परमार्थ कल्याण लक्ष्यभूत रहने के कारण उनकी करुणा दृष्टि को कोई आँच नहीं आती। तार्किक अकलंक ने कहा है कि "नैराम्य भावना का आश्रय ले अपने पैरों पर कुठाराघात करने वाले प्राणियों पर करुणा दृष्टि वश मैंने एकान्त वाद का निराकरण किया है, इसके मूल में न अहंकार है और न द्वेष है ।" इस स्याद्वाद शैली का लौकिक लाभ यह है कि जब हम अन्य व्यक्ति के दृष्टि बिन्दु को समझने का प्रयत्न करेंगे तो परस्पर के भ्रम मूलक दृष्टि जनित विरोध विवाद का अभाव हो भिन्नता में एकत्व (Unity in diversity) की प्रायश्चित विधान ५ जलाउन केह - 40 4000 र

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