Book Title: Prakrit Vidya 2001 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 22
________________ उपकरण एवं सम्यक्त्वपूर्वक दर्शन-ज्ञानचारित्ररूप त्रिरत्नों को धारण कर लिया है, मानो उसने जन्म-पुनर्जन्म की गति रोकने के लिए वज्रमय तिहरी प्राकारभित्तियों का निर्माण कर लिया है। पिच्छि' शिवमार्ग की बुहारी है, 'कमण्डलु' सिंचन करनेवाला है और 'शास्त्र' शिवमार्ग की दिशाबोध की धुवसूची (कम्पास) है। उस दुर्गम-पथ पर पहुँचनेवाला तो कर्मरजोविमुक्त आत्मा ही है, इति शुभम्। सन्दर्भ-अनुक्रमणिका 1. 'जो सवणो णहि पिच्छं गिण्हदि शिंदेदि मूढचारित्तो। जो सवण-संघवज्जो अवंदणिज्जो सदा होदि।।' - (भद्रबाहु क्रियासार, 79). 2. 'अवधेः प्राक् प्रगृह्णन्ति मृदुपिच्छं यथागतम्। यत् स्वयंपतितं भूमौ प्रतिलेखनशुद्धये।।' - (भावसंग्रह, 276) 3. 'मत्त्वेति कार्तिके मासे कार्य सत्प्रतिलेखनम्। स्वयंपतितपिच्छानां लिंग चितं च योगिनाम् ।।' -- (मूलाचार) 4. 'पंचसय-पिच्छहत्थो अह चतु-तिग-दोण्णिहत्थो। संघवइहु सीसो अज्जा पुणु होदि पिच्छकरा।।' – (भद्रबाहुक्रियासार) 5. योगी दिगम्बरो मुण्डो बहिपिच्छधरो द्विज:' । - (पद्म०, 13/33) 'ततो दिगम्बरो मुण्डो बहिपिच्छधरो द्विजः'। -(विष्णु०, 3/18) 'मयूरचन्द्रिकापुंजपिच्छिकां धारयन् करे।' – (शिवपु०, 10/80/80) 6. 'पश्वर्धशय्ययाऽनम्य सपिच्छाञ्जलिभालक: ।' - (आचारसार, 61) 7. 'विगौरवादिदोषेण सपिच्छाञ्जलिशालिना।। सदब्जसर्याचार्येण कर्त्तव्यं प्रतिवन्दनम्।।' -(आचारसार, 62) 8: 'पिच्छं कमण्डलु वामहस्ते स्कन्धे तु दक्षिणम् । हस्तं निधाय संदृष्ट्या स व्रजेत् श्रावकालयम् ।।' -(धर्मरसिक) 9. 'सन्ति मयूरपिच्छेऽत्र प्रतिलेखनमूर्जितम्। तं प्रशंसन्ति तीर्थेशा दयायै योगिनां परम् ।।' - (मूलाचार, 32) 10. 'छत्रार्थं चामरार्थं च रक्षार्थं सर्वदेहिनाम्। यंत्रमंत्रप्रसिद्ध्यर्थं पंचैते पिच्छिलक्षणम् ।।' -- (मंत्रलक्षणशास्त्र) ___11. 'रजसेदाणमगहणं मद्दवसुकुमालदा लघुत्तं च । - जत्थेदे पंचगुणा तं पडिलिहणं पसंसंति।।' – (मूलाराधना, 98) 12.. 'अथ पिच्छिकागुणा रज:स्वेदाग्रहणद्वयम्। ___मार्दवं सुकुमारत्वं लघुत्वं सद्गुणा इमे ।। पंच ज्ञेयास्तथा ज्ञेया निर्भयादिगुणोत्तमाः। मयूरपिच्छजातायाः पिच्छिकाया जिनोदिताः ।।' – (सकलकीर्तिधर्मप्रश्नोत्तर, 29-30) 13. 'पिच्छेन मृदुनाऽलिख्य वपुर्धर्माद् विशेन् मुनिः । . छायां तथैव धर्म च भूमिभेदेऽपि चान्वहम् ।।' -- (नीतिसार, 43) 10 20 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001

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