Book Title: Prakrit Vidya 2001 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 84
________________ में तमिलगम् में जैनधर्म इतना अधिक व्याप्त था कि शैवधर्म के अनुयायियों को इस धर्म के प्रभाव तथा जैनधर्म के अनुयायी 'दुष्ट राजाओं' (evilkings) के इस पुराण पर जैन-प्रभाव है ऐसा कुछ निष्पक्ष विद्वान स्वीकार करते हैं। ___ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और भाषा में भी अर्थात् प्राचीनकाल से ही जैन-ग्रंथों में 63 शलाकापुरुष या श्रेष्ठपुरुषों के जीवन-विवरण उपलब्ध है। इस संख्या में 24 तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती आदि महापुरुषों की गणना है। 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' नाम से स्वतंत्र-ग्रंथ भी हैं। नौवीं सदी में प्राकृत में रचित 'तिलोयपण्णत्ति' में पूरा विवरण उपलब्ध है। परियपुराण' पर जैन-प्रभाव के संबंध में इतिहास, पुरातत्त्व की विदुषी प्रो० चंपकलक्ष्मी ने Medieval Bhakti Movements in India नामक अभिनंदन-ग्रंथ में अपने निबंध Religion and Social Change in Tamilnadu (c. 600-1300) में यह मत व्यक्त किया है— "The Saiva hymnists i.e. those who composed the Bhakti hymns, were also of the higher castes but later, in the twelfth century ad at the time of the condification of the Saive canon, a deliberate attempt was made to introduce several fictitious saints in addition to the historical figures to increase the number to 63, many of whom were drawn from low castes including the paraiya or untouchable. The number 63 was a direct borrowal from the Jain Purans dealing with the 63 Salakapurusas or great beings." (P.167) | परियपुराण' की रचना का एक प्रमुख कारण एक जैन-ग्रंथ की लोकप्रियता भी था। वह ग्रंथ था तमिलभाषा के श्रेष्ठ पाँच महाकाव्यों में से एक 'जीवकचिंतामणि', जो कि आज भी तमिल में अध्ययन का विषय है। इसमें जैनचरित-ग्रंथों के प्रसिद्ध नायक जीवंधर का चरित्र, उनके अनेक विवाह तथा उनके द्वारा यह प्रतिपादन कि सांसारिक जीवन बिताने के बाद भी यदि संयम धारण किया जाए, तो कर्मबंधनों से मुक्ति संभव है। जीवंधर हमांगद देश' जो कि कर्नाटक में स्थित माना गया है, के शासक थे। वैराग्य होने पर वे महावीर स्वामी की उपदेश-सभा या 'समवसरण' में गए। वहाँ महावीर के प्रमुख शिष्य या गणधर सुधर्म स्वामी ने उन्हें मुनि-दीक्षा दी थी। वे विपुलाचल से संसार-बंधनों से मुक्त हुए। चोल-शासक कुलोत्तुंग' को उक्त चरित की प्रसिद्धि से चिंता हुई। इसलिए उसने परियपुराणम्' की रचना करवाई। ऊपर संदर्भित पुस्तक में श्री एन० सुब्रमण्यम् ने पृ० 185 पर लिखा "The story of the circumstances under which the Periyapuranam was written, as tradition has it, indicates the Cola king's anxiety to stop the spreading influence of Jainism made him encourage Sekkilar in the composition of the account of the lives of the Nayanmars." जगहों के नाम अयोध्या, नागपुर, उरैयूर, नागपटिट्णम् जैसे स्थल-नाम सांस्कृतिक महत्त्व की सूचना 0082 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001

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