Book Title: Prakrit Vidya 2001 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 123
________________ राजधानी नई दिल्ली के आध्यात्मिक नन्दनवन में स्थित ज्ञानतीर्थ - कुन्दकुन्द भारती दिगम्बर जैन आगम-ग्रन्थों की माध्यम-भाषा 'शौरसेनी प्राकृत', जिसे वृहत्तर भारत के सर्वाधिक व्यापक क्षेत्र में बोली जानेवाली भाषा का स्वरूप प्राप्त था, के प्रचार-प्रसार के लिए कृतसंकल्प उच्चस्तरीय शैक्षिक एवं शोध के संस्थान का नाम है 'कुन्दकुन्द भारती'। ___शौरसेनी प्राकृत को वैयाकरणों ने अन्य प्राकृतों की प्रकृति कहा है—“प्रकृति: शौरसेनी" - (आचार्य वररुचि, प्राकृतप्रकाश) तथा आचार्य रविषेण ने जिसे भाषात्रयी में सादर स्मृत किया है “नामाख्यातोपसर्गेषु निपातेषु च संस्कृता। प्राकृती शौरसेनी च भाषायत्र त्रयी स्मृता।।" - (पद्मपुराण, 24/11) ऐसी महती भारतीय भाषा के प्रमुख ज्ञान-केन्द्र कुन्दकुन्द भारती' के लिए निरन्तर उन्नति एवं प्रगति-हेतु हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 'जैनबोधक' (जैनसमाज का प्राचीनतम प्रतिनिधि पत्र)

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