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किया, उतना कृपापात्र मैं किसी का भी नहीं बन सका । और उनकी यह कृपा अहेतुकी थी।” प्राकृतभाषा और साहित्य के समुन्नयन के लिये भी वे कृतसंकल्प थे, तथा संस्कृत-भाषा को स्वातंत्र्यउत्तरोत्तर भारत में झोपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक पहुँचाने के बाद वे प्राकृतभाषा के लिये समर्पित थे। जिस समय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की NET परीक्षा से प्राकृतभाषा को हटाया गया, तो उन्होंने अपनी दूरदर्शितापूर्ण नीति से अविलम्ब उसे पूर्ण स्वतंत्र के विषय के रूप में पुनः स्थापित करवाया। उन्हीं की प्रेरणा से श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय), नई दिल्ली के यशस्वी कुलपति प्रो० वाचस्पति उपाध्याय जी ने इस विद्यापीठ में स्वतंत्र प्राकृत विभाग की स्थापना की ।
कुन्दकुन्द भारती न्यास की समस्त शैक्षणिक एवं शोधपरक गतिविधियों के वे प्रमुख मार्गदर्शक थे । यह संस्था उन्हीं के मार्गदर्शन में प्रगतिपथ पर अग्रसर थी ।
ऐसे यशस्वी संरक्षक एवं अद्वितीय मनीषी भाषाविद् का असामयिक वियोग सम्पूर्ण संस्कृत-प्राकृत-जगत् की अपूरणीय क्षति तो है ही, विश्व के सांस्कृतिक एवं शैक्षिक क्षेत्र में भी एक बहुत बड़ा शून्य उनके न होने से उत्पन्न हुआ है।
सर्वजनप्रिय श्री रमेशचन्द जैन (पी. एस. जे. ) अब हमारे बीच नहीं रहे
हरियाणा प्रान्त के रोहतक नगर में श्रीमान् लाला प्रताप सिंह एवं माता श्रीमती इलायची देवी की कोख से 9 सितम्बर 1939 को एक बालक का जन्म हुआ । होनहार, सेवाभावी, कुलदीपक, कीर्ति पालक बालक को नाम मिला श्री रमेशचन्द जैन । मानवसेवा एवं मर्यादानुपालक ये दो सूत्र आपको पारिवारिक विरासत में मिले ।
श्री रमेशचन्द शिक्षा की सीढ़िया पार करने के बाद व्यवसायोन्मुखी हुए । संकल्प निष्ठा परिश्रम मिलनसारिता के बल पर आपने कारोबार की चहुँमुखी प्रगति की । भाग्य, पुरुषार्थ और कुल - पुण्यार्थ का सम्बल पाकर आप कम समय में ही प्रमुख व्यवसायों में गिने जाने लगे। व्यवसाय के लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए आपका ध्यान धर्म और समाज की ओर गया। मन की पवित्रता वाणी के माधुर्य एवं व्यवहार की कुशलता के कारण आपने जिस संस्था की भी बागडोर संभाली, उसे आकाश की ऊँचाईयों तक पहुँचा दिया ।
'कुन्दकुन्द भारती' जैसी प्रतिष्ठित संस्था के आप संस्थापक- मंत्री एवं आजीवन - ट्रस्टी रहे । असाधारण कर्मठता और समन्वयत्कम भावना शक्ति से 'भारत जैन महामंडल' को प्राणवन्त बनाने में आपकी विशेष भूमिका रही । 'भगवान् महावीर के 2500वें परिनिर्वाण-महोत्सव' की सफलता एवं 'भगवान् बाहुबलि सहस्राब्दी महोत्सव' एवं महामस्तिकाभिषेक में आपकी सेवाओं एवं सहयोग को समाज शताब्दियों तक स्मरण करेगा ।
आप पी.एस.जे. फाउण्डेशन के अध्यक्ष थे । आप अनेक जैन और जैनेतर संस्थाओं से जीवन भर जुड़े रहे। दिगम्बर जैन महासमिति, दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, भगवान्
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001
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