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प्रसिद्ध दीपमालिका के द्वारा भगवान् महावीर की पूजा करने के लिए उद्यत रहने लगे अर्थात् उन्हीं की स्मृति में दीपावली का उत्सव मनाने लगे।"
भारत के जैन आज भी उक्त तिथि को प्रात: 'निर्वाणोत्सव' मनाते हैं। अंतर इतना ही पड़ा है कि 'दीपमालिका' संध्या के समय की जाने लगी है। किंतु दक्षिण जिसमें जैनधर्म का किसी समय अत्यधिक प्रसार था, अब भी प्रात:काल ही दीपावली मनाता है, जब पावापुरी में मनुष्यों और देवों ने दीपोत्सव किया था। यदि निष्पक्षरूप से विचार किया जाए, तो केरल के 'दीपम उत्सव' का औचित्य समझ में आ सकता है। संस्कार इतनी जल्दी नष्ट नहीं होते।
केरल में जो प्राचीन जैन-मंदिर ब्राह्मणों के अधिकार में चले गए हैं, उनके बाहर की दीवालों पर एक के ऊपर एक अनेक पंक्तियों में जो सैकड़ों दीप-आधार बने हुए हैं, उनसे ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि जैन कितनी धूमधाम से भगवान् महावीर का निर्वाणोत्सव अथवा दीपावली मनाते रहे होंगे। रथोत्सव
केरल के अनेक मंदिरों में रथोत्सव मनाया जाता है। इसके संबंध में यह अनुमान लगाया गया है कि इस पर बौद्ध-प्रभाव है। गजेटियर (10238) का कथन है कि, "It is contended by some writers that the temple processions in Kerala owe much of their features to Buddhistic ritualistic performances. The elephant procession (Anai Ezhunnallippu) with its accompaniments of Muthukuda, Alavattam, Venchamaram etc. has marked similarity to the processions of theBuddhists." केरल के इतिहास के जानकार यह भलीभाँति जानते हैं कि सातवीं सदी ई० में जब चीनी-यात्री ह्वेनसांग केरल में आया था, तो उसे दिगम्बरसाधु बहुत अधिक संख्या में देखने को मिले थे। और यह कि बौद्धधर्म केरल से नौवीं सदी में ही लुप्त हो गया था। ऐसी स्थिति में लगभग एक हजार वर्ष के बाद भी उसका अनेक मंदिरों के रथोत्सव पर प्रभाव बताना ऐतिहासिक खींचातानी' ही मानी जाए, तो कुछ अनुचित नहीं होगा। इसके विपरीत जैनधर्म आज भी केरल में विद्यमान है। उसकी रथोत्सव की परम्परा बहुत प्राचीन है। भादों में दस दिनों के 'पर्युषण-पर्व' के अंत में, महावीर-जयंती तथा नवीन मंदिर या मूर्ति की प्रतिष्ठा आदि अवसरों पर रथयात्रा निकाली जाती है। पिछले दशक में उत्तरभारत में अनेक स्थानों पर गजरथ' निकले हैं। इन रथों में हाथी जोते जाते हैं और इन ऊंचे रथों में तीर्थंकर-प्रतिमा विराजमान की जाती है। केरल जैसे हाथी-बहुल प्रदेश में इसप्रकार के गजरथों की परंपरा अतीत में बहुत प्रबल रही हो, तो कोई आश्चर्य नहीं। हाल ही में 'गोम्मटेश्वर रथ' तथा 'तीर्थवंदना रथ' सारे भारत में घूमा था। इन तथ्यों को देखते हुए जैन-परम्परा पर भी विचार किया जाना चाहिए। पेरियपुराणम्
परियपुराणम्' तमिल का शब्द है, उसका अर्थ है 'महापुराण' । ईसा की छठी शताब्दी
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001
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