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आध्यात्मिक गीत
जीवनभर उपदेश दिये पर, निज को हम पहिचान न पाए !
-विद्यावारिधि डॉo महेन्द्र सागर प्रचंडिया
चौरासी भव-भव घूमे हैं,
अनगिन मरन- चरन चूमे हैं,
जाने कितने जनम लिए पर, जनम-धरम को जान न पाए ।
जीवनभर उपदेश दिये पर, निज को हम पहिचान न पाए ।। 1 ।।
लिया जनम जब कुल कुलीन में, - अधीन में,
बिता दिया सब पर - 3
नहीं बने स्वाधीन अन्त तक, कर्मचक्र पहिचान न पाए।
जीवनभर उपदेश दिये पर, निज को हम पहिचान न पाए ।। 2 ।।
गुरु-कुल के सारे गुन धारे,
घेरे रहे अज्ञ अंधियारे,
पढ़ीं पोथियाँ जीवनभर पर, दर्शन-ज्ञान हाथ नहिं आए ।
जीवनभर उपदेश दिये पर, निज को हम पहिचान न पाए।। 3 ।।
तीर्थ गए, तीर्थंकर पूजे,
उर में स्वारथ के स्वर गूँजे,
मोह - नींद में अब तक सोए, अंत समय तक जाग न पाए।
जीवनभर उपदेश दिये पर, निज को हम पहिचान न पाए ।। 4 ।।
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घर में घिरते रहे रात-दिन,
हुआ अन्त तक नहीं जागरन,
लखते रहे रूप ले दर्पन, पर स्वरूप को जान न पाए। जीवनभर उपदेश दिये पर, निज को हम पहिचान न पाए ।। 5 ।।
प्राकृतविद्या+अक्तूबर-दिसम्बर 2001