Book Title: Prakrit Vidya 2001 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 111
________________ श्री भगवान् महावीर का 162 वर्ष पुराना सिक्का तमिल मासिक ‘मुक्कुडै' (अक्तूबर 2001 ) में प्रो० जीवन्धर कुमार (भद्रावती) ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा 1839 ई० में जारी किये गये एक सिक्के का विवरण दिया है, जिस पर भगवान् महावीर की प्रतिकृति अंकित है। तांबे के इस गोल सिक्के का वजन 12 ग्राम, व्यास 2 सेमी०, और मोटाई 1 मिमी० बताई है। सिक्के सामने की ओर आकर्षक डिजालन से आवृत्त, सुन्दर भामण्डल - सहित दिगम्बर ध्यानस्थ-मुद्रा में पद्म पर आसीन 24वें जैन तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर की प्रतिकृति उत्कीर्ण है, और उसके पार्श्व में देवनागरी लिपि में 'श्री भगवान् महावीर' उत्कीर्ण है । पृष्ठ-भाग पर मध्य में कलात्मक ढंग से 'ऊँ' और ऊर्ध्वभाग में तारे सहित अर्द्ध-चन्द्र, सूर्य और त्रिशूल की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं, तथा रोमन लिपि में Half Anna व East India Company और 1839 उत्कीर्ण हैं। - (साभार- शोधादर्श, नवम्बर 2001 ) ** डॉ० एस०पी० पाटील 'चामुंडराय पुरस्कार' द्वारा सम्मानित कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड के कन्नड़ तथा जैनशास्त्र विषय के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ० एस०पी० पाटील को उनके शोध-प्रबंध 'चामुंडराय पुराण एक अध्ययन' के लिए 'कन्नड़ साहित्य परिषद्' बैंगलोर की ओर से प्रस्तुत वर्ष 2001-2002 का 'चामुंडराय पुरस्कार' घोषित किया गया। डॉ० एस० पी० पाटील ने लगभग 40 ग्रंथों की रचना की है। 'स्याद्वाद केसरी', 'तीर्थवंदना' आदि स्मरणिकाओं का संपादन भी आपने किया है। विद्यापीठ तथा राष्ट्रीय स्तर पर विविध परिचर्चाओं तथा प्रबंधवाचन में सहभाग के साथ-साथ अध्यक्षपद भी आपने विभूषित किया है। जैन साहित्य तथा संस्कृति की सेवा के लिए आपको इसके पूर्व 'साहित्य परिषद पुरस्कार', देवेंद्रकीर्ति पुरस्कार', 'गोम्मटेश्वर पुरस्कार', 'आचार्य श्री बाहुबली मुनि कन्नड़ साहित्य पुरस्कार', कन्नड़ - मराठी बंधुभाव क्षेत्र की सेवा के लिए मुंबई के कर्नाटक- संघ का 'वरदराज आद्य पुरस्कार' आदि पुरस्कारों के द्वारा वे सम्मानित हैं। आप बाहुबली से प्रकाशित 'सन्मति' मुखपत्र के मानद सम्पादक भी रह चुके हैं। 'अनेकान्त शोधपीठ', 'श्रुतिकेवल एज्युकेशन ट्रस्ट', 'कुंदकुंद भारती', 'साहित्य अकादमी', 'कन्नड़ साहित्य परिषद' आदि संस्थाओं से आपका निकट संबंध रहा है | श्रवणबेलगोल के 'राष्ट्रीय प्राकृत अध्यापन तथा संशोधन संस्था के मानद संचालक के रूप में एक वर्ष तथा राष्ट्रीय स्तर पर 'जैन विद्वत्परिषद्' के कार्यकारी समिति के सभासद के रूप में आपने सेवा की है। पुरस्कार में 20 हजार रुपये तथा प्रशस्ति पत्र दिया गया है। -सम्पादक ** प्राकृतविद्या के स्वत्वाधिकारी एवं प्रकाशक श्री सुरेशचन्द्र जैन, मंत्री, श्री कुन्दकुन्द भारती, 18-बी, स्पेशल इन्स्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली- 110067 द्वारा प्रकाशित; एवं मुद्रक श्री महेन्द्र कुमार जैन द्वारा, मै० घूमीमल विशालचंद के मार्फत प्रेम प्रिंटिंग वर्क्स चूड़ीवालान, चावड़ी बाजार, दिल्ली-110006 में मुद्रित । भारत सरकार पंजीयन संख्या 48869/89 प्राकृतविद्या+ अक्तूबर-दिसम्बर '2001 00 109

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