Book Title: Prakrit Vidya 2001 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 51
________________ 81 में से 64 भाजक घटा दिया, तब शेष रहा 1792 । इस संख्या का आदि अंक 1 अलग लिख दीजिये। फिर 1792 की प्रथम तीन संख्याओं में अर्थात् 179 में भाजक 64 का भाग कर भजनफल 2 को उक्त 1 के साथ (अर्थात् 12) लिख दीजिये, शेष 51 बचा। उसे फल (2) के साथ लिखकर (512) पुन: भाजक का भाग दिया और पूर्वोक्त 12 के साथ इस भजनफल को मिला देने से 128 भजन फल हो गया। यथाप्राचीन पद्धति ., नवीन पद्धति 8192 64 8192 128 64 64 1792 179 128 64 179 2 12 x512 512 128 128 उत्तर उत्तर 128 लब्धराशि 512 5128 अपने कार्यों के माध्यम से वे अमर हैं ___ “साहित्य-सेवा तो घरफूक तमाशा है" —यह एक लोकप्रचलित कहावत प्रसिद्ध है। पूर्वाचार्यो पर यह उक्ति लागू होती है अथवा नहीं, यह तो कहना कठिन है; किन्तु भारतीयसाहित्य के हिन्दीकाल से ऐसा प्राय: देखा जाता रहा है। टोडरमलजी के ऊपर तो वह शतश: लागू होती है। उन्हें साहित्य-सेवा का जो फल मिला, वह हम सभी जानते हैं। उनकी मृत्युसम्बन्धी दुर्घटना के स्मरण से हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं, तथा सांस रुंधने लगती है। मानवता के दुर्भाग्य से उन्हें वही पुरस्कार मिला, जो सहस्रों वर्ष पूर्व मानव-संस्कृति के महावाहक परमऋषि सुकरात, ईसा एवं नवयुग-निर्माता महात्मा गांधी को मिला । वस्तुत: उनके जीवन की वही खरी-परीक्षा थी और उसमें उन्होंने सर्वोपरि उत्तीर्णता प्राप्त की। आज ग्रह-नक्षत्रों के साथ उनकी दिव्यात्मा दैदीप्यमान है और सृष्टि के अन्त तक विवेकीजन उन्हें भुला न सकेंगे। सन्दर्भग्रंथ-सूची 1. मोक्षमार्ग प्रकाशक (दिल्ली, 1950), पृ० 171 2. पं० हजारीप्रसाद द्विवेदीकृत हिन्दी साहित्य' (दिल्ली 1952) पृ० 364-65 1 3. मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृ० 29-30 1 4. मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृ० 368 । 5. वही, पृ० 369। 6. मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृ० 270-271। 7.त्रिलोकसार भूमिका, पृ० 5। प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001 00 49

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