Book Title: Prakrit Vidya 2001 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 53
________________ 'भ' के पश्चात् 'म' वर्ण आता है। 'यम' में जो फंस गया, उसका उद्धार नहीं, और जो 'यम' तक पहुँच गया, उसे यम का भय नहीं। अग्नि अग्नि को जला नहीं सकती और यम को यम मार नहीं सकता। इसी आशय से वैदिकों ने कहा कि 'कालं कालेन पीडयन् ऋषि काल को काल से ही पीड़ित करते थे। जो स्वयं संयमशील नहीं हैं, उन्हें ही यम का भय है। संयमी-व्यक्ति तो घोषणा करता है कि न मृत्यवे अवतस्थे कदाचन' -मैं कभी मृत्यु के लिए नहीं बना। संयम के पालन से इच्छा मृत्यु होती है। ___ शास्त्रकारों ने कहा है कि 'व्रत-समिति-कषायाणां दण्डानां तथेन्द्रियाणां पंचानाम् । धारणं-पालन-निग्रह-त्याग- जया: संयमो भणित: ।' अर्थात् व्रतों का धारण, समितियों का पालन, कषायों का निग्रह, दण्डों का त्याग तथा पाँचों- इन्द्रियों को जीतना उत्तम संयम' कहा गया है। इस पर विचार किया जाए, तो सम्पूर्ण मुनिचर्या संयम के अन्तर्गत परिलक्षित होती है। मुनि के मूलगुणों की रक्षा संयम से ही सम्भव है। संयम का पालन अपने आध्यात्मिक-कोष का संवर्धन है। जैसे संसार में लोग आर्थिक-उपार्जन कर 'बैंकबैलेंस' बढ़ाते हैं, वैसे संयमी अपने आत्मा को शुद्धोपयोग और शुभोपयोग में लगानेवाले द्रव्य को परिवर्धित करता है। जो लोग अपने रूप, बल, पराक्रम, बुद्धि तथा वीर्य को संसार में लगाते हैं, वे मानों अपनी पूंजी को जुये में हार रहे हैं। इन्द्रिय-विषयों ने जो रूप-राग की चौपड़ बिछा रखी है, उस पर उनके सद्गुण, सद्वित्त दांव पर लग रहे हैं। परन्तु आश्चर्य इस बात का है कि विषय-द्यूत में अपनी वीर्यरूप उत्तम-पूंजी को हारकर भी, गंवाकर भी लोग दुःखी नहीं होते। साधारण जुये में तो पराजित को दु:ख होता देखा जाता है; परन्तु जो संयमी हैं, उनका धन सुरक्षित रहता है। संयम से जो शक्ति प्राप्त होती है, संचय होता है; वह मानव जीवन को ऊँचा उठाती है। असंयम और संयम में यही मुख्य-भेद है। असंयम सीढ़ियों से नीचे उतरने का मार्ग है और और संयम ऊपर जाने का। 'उन्नतं मानसं यस्य भाग्यं तस्य समुन्नतम्' जिसका मन ऊँचा होता है, उसका परिणाम शुद्ध होता है। और मन की उच्चता परिणामों पर निर्भर है। संसार के प्राणियों को संचय की, परिग्रह की आदत है। परन्तु संयमरूप सुपरिग्रह का संचय करने की ओर उनका ध्यान नहीं है। संयम का संचय करने लगें, तो आज के बहुत से अभावों की दुष्ट-अनुभूति से बच सकते हैं। __संयम के विरोधी गुणों का वर्गीकरण करें, तो पता चलेगा कि आज के लोग उनके कितने वशीभूत हैं। श्रृंगार, विलास, मद्यमान, द्यूत, आहारविवेक-शून्यता, धूम्रपान, व्यभिचार, अब्रह्मचर्य, मिथ्या-भाषण इत्यादि शतश: इतने दुर्व्यसन हैं; जिन्होंने आज के मानव-जीवन को दबोच रखा है। संयम न रखनेवाले इनसे बहुत दु:खी हैं। यदि संयम धारण कर लें, तो इन दुर्व्याधियों से मुक्त हो सकते हैं । अनावश्यक खाने-पहनने की वस्तुओं का संचय करने से मनुष्य पर आर्थिक भार बढ़ता है और यही सब अनर्थों की जड़ है। आज के मानव प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001 40 51

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