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देवताओं की चिता
-आनन्द प्रकाश जैन
महान् विजेता सिकन्दर के भव्य स्वागत के लिए कुमार आंभी ने तक्षशिला के द्वार खोल दिये। लंबे-चौड़े राजमार्ग पर, छज्जे और अटारियों पर झुके हुए संख्यातीत आश्चर्य और उत्सुकतापूर्ण नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न करती, सिकन्दर की दुर्दम्य सेनायें मार्च करती हुई चल रही थीं। विचित्र प्रकार के उनके लौह-कवच, अनदेखे हथियार और उन्मत्त अरबी घोड़ों को देख देख कर तक्षशिला के साधारणजन एक-दूसरे के कानों में कुछ न कुछ फुसफुसा रहे थे। थोड़ी-थोड़ी देर बाद दिखायी पड़ते यूनानी-सेनापतियों की ओर इशारा करके वे लोग बार-बार आसपास खड़े लोगों से पूछते थे, “यही है अलक्षेन्द्र, जिसने सहस्रों ब्राह्मणों को मौत के घाट उतार दिया है?"
और उत्तर मिलता था, “नहीं, यह अलक्षेन्द्र नहीं है।”
तब इसप्रकार अपनी उत्सुकता शांत करनेवालों के कल्पना-पट पर एक और ऐसे व्यक्ति की काल्पनिक-मूर्ति अंकित हो जाती थी, जिसमें मृत्यु के देवता यम ने सुंदरतम रूप में अवतार लिया था। यह वह देवता था, जो आंधी और तूफान बनकर पश्चिम से उठा था और राह में पड़नेवाले प्रत्येक उस प्राणी का अस्तित्व उसने इस दुनिया से उठा दिया था, जिसने ऊँचा करके खड़ा होने का साहस किया था। ___ तक्षशिला में आये सिकन्दर को दो दिन हो गये और आगे चढ़ाई के लिए नक्शे बन रहे थे कि तक्षशिला से दस मील दूर रहनेवाले पंद्रह मानवों ने विचित्र-उदंडता से उसकी शक्ति को चुनौती दी। ___ अपनी शक्ति की महत्ता स्थापित करने के लिए सिकन्दर ने तक्षशिला में एक बड़ा भारी दरबार किया था, जिसमें आंभी के अधीन सभी राजाओं को निमंत्रण मिला था। उस दरबार का सबसे बड़ा उद्देश्य था भारत के भूपतियों के सामने यूनानी सम्राट् के प्रताप का दिग्दर्शन । इस दरबार में उसके सामने झुक जानेवालों को यूनानी भेंट दी जानेवाली थी और विद्रोहियों को ऐसे दंड दिये जाने थे, जिनसे भावी-विद्रोहियों का रोम-रोम काँप जाये।
इस अवस्था में सिकन्दर के एक उपसेनापति ने दरबार में उपस्थित होकर अपने स्वामी के प्रति सिर झुकाया और निवेदन किया, “तक्षशिला के कुछ साधु महान् विजेता की आज्ञा
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001
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