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(rock-beds), छतरीनुमा शिलाच्छादित समाधि-स्थलों (टोपी कल्लु Topikallu, kudakkal) आदि का भी निर्माण किया और मूर्तिकला में भी यथेष्ट योगदान किया। श्री ए० श्रीधर मेनन अपनी पुस्तक Social and Cultural History of Kerala में लिखते हैं— "The Jain relics form an important part of the sculptural heritage of Kerala."
अनेक जैन-मंदिर मस्जिदों के रूप में परिणत कर दिए गए। इसीप्रकार अनेक जैन-मंदिर आज शिव, विष्णु अथवा भगवती-मंदिर के रूप में परिवर्तित है। जैन-कला और स्थापत्य का आकलन करते समय इनको भी ध्यान में रखना उचित होगा। इसमें एक कठिनाई यह भी आती है कि स्पष्ट संकेतों के होते हुए भी इनके संबंध में कुछ कथायें.प्रचलित कर दी गई हैं और इतिहास धूमिल हो गया है। मंदिरों की बहुलता जैनों के कारण
यह सभी जानते हैं कि प्राचीन समय में और कुछ अंशों में आज भी वैदिक-धर्म का मुख्य-लक्षण यज्ञ करना रहा है। इसके लिए यज्ञशालायें हुआ करती थीं, जबकि जैन-लोग मूर्तियों की पूजा करते थे और अब भी करते हैं। इसके लिए मंदिरों का निर्माण किया जाता था और किया जाता है। केरल में मंदिरों की संख्या बहुत अधिक बताई जाती है। इसका कारण यज्ञ तो संभवत: नहीं हो सकता। वास्तव में, संस्कृत में कुछ मंत्र आदि बोलकर 'स्वाहा-स्वाहा' में साधारण-लोगों को अधिक आनंद की अनुभूति नहीं होते देखकर संभवत: वैदिकों में भी मंदिर-निर्माण की प्रवृत्ति जगी होगी ऐसा कुछ इतिहासकारों का मत है। यदि इलंगो अडिकल की अमर-रचना 'शिलप्पादिकारम्' ध्यान से पढ़ें, तो ज्ञात होगा कि ब्राह्मण यज्ञादि में ही अधिक विश्वास करते थे। ShriM.S. Ramaswami Ayyangar,' author of 'Studies in South Indian Jainism', opines that, "Idol worship and temple building on a grand scale in South India have also to be attributed to Jain influence. The essence of Brahminism was not idol worship. How came it then that the Dravidians built large temples in honour of their Gods? The answer is simple. The Jains erected statues to their Tirthankaras and other spiritual leaders and worshipped them in large temples. As this method of worship was highly impressive and attractive, it was imitated." (P.77) अपने मत के समर्थन में उन्होंने उन अनेक देव-कुलिकाओं (niches) का उदाहरण दिया है, जो कि शैव-संतों के सम्मान में बहुत अधिक बनाये गये हैं तथा मंदिरों में उन्हें प्रतिष्ठित किया गया है। केरल में अनेक मंदिरों या कोविलों के संबंध में यह कहा जाता है कि वे परशुराम द्वारा दिए गए हैं। ऊपर हम श्री मेनन का यह मत देख चुके हैं कि परशुराम-संबंधी कथा कुछ स्वार्थियों ने अपने मन से गढ़ ली है। यही बात इसप्रकार के मंदिरों पर भी लागू समझी जा सकती है। संभवत: उन पर अधिकार किया गया है। इस पर अनुसंधान होना चाहिए।
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001