Book Title: Prakrit Vidya 2001 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ 45. संघपट्ट 46. ढूंढारी-पन्थ दिगम्बर जैन ग्रन्थ 47. षट्प्राभृत 262,266-68 48. पंचास्तिकाय 326 49. प्रवचनसार 33,272,344 50. रयणसार 277 51. धवल 387 52. जयधवल 387 53. परमात्मप्रकाश 269 54. श्रावकाचार (योगीन्द्रदेवकृत) 350 55. गोम्मटसार 319,387 56. लब्धिसार 385 57. क्षपणासार 58. रत्नकरण्ड-श्रावकाचार 59. वृहत्स्वयम्भू-स्तोत्र 60. ज्ञानार्णव 61. धर्मपरीक्षा 399 62. सूक्तिमुक्तावली 413 63. आत्मानुशासन 24,81,269 64. तत्त्वार्थसूत्र 310,329,338 65. समयसारकलश 286-287 66. नाटक समयसार 305 67. पद्मनन्दि-पंचविंशति 295 68. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय 372 69. आयुर्वेद के ग्रन्थ 412,413,439,443 70. पाहुडदोहा 24,25 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' वस्तुत: अमृतघट है। उसका एक-एक विषय सरल एवं मधुर है। जिसप्रकार 'रामचरितमानस' में सुखी-दु:खी, गरीब-धनवान, भाई-बहिन, पति-पत्नी, माता-पिता, शत्रु-मित्र, रिश्तेदार आदि सभी प्राणी अपनी-अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त कर प्रसन्नता से झूम उठते हैं; 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' भी सामान्य ममक्षजनों के लिये उसी औपन्यासिक-शैली में लिखा गया एक अनूठा-ग्रन्थ है। टोडरमलंजी स्वयं ही ग्रन्थ की प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001 00 45

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124