Book Title: Prakrit Vidya 2001 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 32
________________ भगवान् महावीर . -(स्व०) पं० बलभद्र जैन महावीर की जन्म नगरी वैशाली वैशाली गणराज्य था, इसे वज्जिसंघ' अथवा 'लिच्छवी गणसंघ' कहा जाता था। इस संघ में विदेह का वज्जिसंघ और वैशाली का लिच्छवीसंघ सम्मिलित था। दोनों की पारस्परिक सन्धि के कारण विदेह के गणप्रमुख चेटक को इस संघ का गणप्रमुख चुना गया और इस संघ की राजधानी वैशाली' बनी। इस संघ में आठ कुलों के नौ गण भागीदार थे। ये सभी लिच्छवी थे और इनमें ज्ञातृवंशी प्रमुख थे। इन आठ कुलों के नाम ये थे— भोगवंशी, इक्ष्वाकुवंशी, ज्ञातृवंशी, कौरववंशी, लिच्छवीवंशी, उग्रवंशी, विदेहकुल और वज्जिकुल (वृज कुल)। लिच्छवी होने के कारण ही ये अष्टकुल परस्पर संगठित रहे। इस संघ में शासन का अधिकार इन अष्टकुलों को प्राप्त था। शेष नागरिकों को शासन में भाग लेने का अधिकार नहीं था। लिच्छवीगण ही अपने सदस्यों को चुनता था। चुने हुए प्रत्येक सदस्य को राजा कहा जाता था। ऐसे राजाओं की कुल संख्या 7707 थी। जब नवीन राजा का चुनाव होता था, उस समय उस राजा का अभिषेक एक पुष्करिणी में समारोहपूर्वक किया जाता था, जिसे 'अभिषेक' या मंगल पुष्करिणी' कहते थे। इसमें लिच्छवियों के अतिरिक्त अन्य किसी को स्नान मज्जन करने का अधिकार नहीं था। इसके ऊपर लोहे की जाली रहती थी और सशस्त्र प्रहरी पहरा देते थे। वैशाली के तीन भाग थे— वैशाली, कुण्डग्राम और वाणिज्यग्राम। ये क्रमश: दक्षिणपूर्व, उत्तरपूर्व या पश्चिम में स्थित थे। कुण्डग्राम या कुण्डपुर के दो भाग थे- क्षत्रिय-कुण्डपुरसन्निवेश, ब्राह्मण-कुण्डपुर-सन्निवेश। पहले में प्राय: ज्ञातवंशी क्षत्रिय और दूसरे में ब्राह्मण रहते थे। वाणिज्य-ग्राम में प्राय: बनिये रहते थे। लिच्छवी-संघ में सभी निर्णय सर्वसम्मत होते थे। यदि कभी मतभेद होता था, तो उसका निर्णय छन्द (वोट) द्वारा होता था। वज्जि-संघ के निकट ही मल्ल-गणसंघ और काशी-कोलगणसंघ थे। वज्जिसंघ के साथ इन दोनों गणसंघों की संधि थी। किसी संघ पर आक्रमण होने पर तीनों संघों की सन्निपात-भेरी की सम्मिलित बैठक होती थी। उसमें महासेनापति का 0030 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001

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