Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेरहवाँ परिणाम पद - नैरयिकों में परिणाम
अनिष्ट विषय के संबंध से राग द्वेष के परिणाम होते हैं अत: इन्द्रिय परिणाम के बाद कषाय परिणाम का कथन किया गया है ४. जहाँ कषाय परिणाम होता है वहाँ लेश्या परिणाम अवश्य होता है और लेश्या परिणाम कषाय परिणाम के बिना भी होता है अंतः कषाय परिणाम के बाद लेश्या परिणाम कहा गया है किन्तु लेश्या परिणाम के पश्चात् कषाय परिणाम नहीं कहा है ५. लेश्या परिणाम योग के परिणाम रूप है क्योंकि 'योग परिणामो लेश्या' - ऐसा शास्त्र वचन है अतः लेश्या परिणाम का कथन करने के बाद योग- परिणाम कहा है ६. संसारी जीवों में योग का परिणाम होने के बाद उपयोग का परिणाम होता है अतः योग परिणाम के बाद उपयोग परिणाम का कथन किया गया है ७. उपयोग परिणाम होने से ज्ञान परिणाम होता है अतः उसके बाद ज्ञान परिणाम कहा गया है ८. ज्ञान परिणाम दो प्रकार का है - सम्यग्-ज्ञान परिणाम और मिथ्या-ज्ञान परिणाम। दोनों प्रकार के ज्ञान परिणाम सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन के बिना नहीं होते अतः ज्ञान परिणाम के बाद दर्शन परिणाम कहा गया है ९. सम्यग्-दर्शन परिणाम होने से जीवों को जिन-वीतराग वचन श्रवण द्वारा नया नया संवेग (मोक्ष की तीव्र अभिलाषा) उत्पन्न होता हैं। संवेग होने से चारित्रावरण कर्म का क्षयोपशम होने से चारित्र परिणाम होता है, अतः दर्शन परिणाम के बाद चारित्र परिणाम कहा गया है १०. चारित्र परिणाम से महा सत्त्व वाली आत्मा वेद परिणाम का नाश करती है अत: चारित्र परिणाम के बाद वेद परिणाम कहा गया है।
नैरयिकों में परिणाम णेरइया गइ परिणामेणं णिरय गइया, इंदिय परिणामेणं पंचिंदिया, कसाय परिणामेणं कोह कसाई वि जाव लोभ कसाई वि, लेस्सा परिणामेणं कण्हलेसा वि णील लेसा वि काउलेसा वि, जोग परिणामेणं मणजोगी वि वइजोगी वि कायजोगी वि, उवओग परिणामेणं सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि, णाण परिणामेणं आभिणिबोहिय णाणी वि, सुयणाणी वि, ओहिणाणी वि, अण्णाण परिणामेणं मइअण्णाणी वि सुयअण्णाणी वि विभंगणाणी वि, दंसणपरिणामेणं सम्मादिट्ठी वि मिच्छादिट्ठी वि सम्मामिच्छादिट्ठी वि, चरित्तपरिणामेणं णो चरित्ती, णो चरित्ताचरित्ती,
अचरित्ती, वेयपरिणामेणं णो इत्थिवेयगा, णो पुरिसवेयगा, णपुंसगवेयगा। । भावार्थ - नैरयिक गति परिणाम से नरक गति वाले, इन्द्रिय परिणाम से पंचेन्द्रिय, कषाय परिणाम से क्रोध कषाय वाले यावत् लोभ कषाय वाले, लेश्या परिणाम से कृष्ण लेश्या वाले नील लेश्या वाले और कापोत लेश्या वाले, योग परिणाम से मनयोग वाले, वचनयोग वाले और काययोग
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