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की सभा में आगमन, सत्यभामा द्वारा नारद को सम्मान न देना, नारद द्वारा सत्यभामा का मानमर्दन करने का संकल्प, श्री कृष्ण द्वारा रुक्मिणी हरण एवं शिशुपाल वध, प्रद्युम्न का मुनि के पास जाना आदि घटनाओं का कोई 'उल्लेख नहीं है। प्रद्युम्न चरित में कंचनमाला द्वारा प्रद्युम्न को तीन विद्यार्थी का देना लिखा है जबकि उत्तरपुराण के अनुसार प्रम्न ने इससे प्रज्ञप्ति नाम की विद्या लेकर उनकी सिद्धि की थी ।
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महाकवि सिंह द्वारा रचित अपभ्रंश भाषा के काव्य पज्जुक ( १३ वीं शताब्दी) और प्रस्तुत प्रद्यम्न चरित की कथा में भी साम्य है । केवल पज्जुका में प्रत्येक घटना का विस्तृत वर्णन करने के साथ-साथ प्रम्यन के पूर्वभवों का भी विस्तृत वर्णन किया गया है जबकि प्रम्न चरित में इनका केवल नामोल्लेख है। इसके अतिरिक्त 'पज्जुहा की कथा श्रे शिकराजा द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर गौतम गणधर द्वारा कहलाई गई है किन्तु सधारु कवि ने मंगलाचरण के पश्चात् ही कथा का प्रारम्भ कर दिया है ।
महासेनाचार्य कृत संस्कृत प्रद्युम्न चरित ११ श्रीं शताब्दी की रचना है। रचना १४ सर्गों में विभाजित हैं I पज्जुशाकमा की तरह घटनाओं का इसमें भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है इसमें और प्रद्युम्न चरित्र की कथा में पूर्णतः साम्य है ।
इसी प्रकार हेमचन्द्राचार्य कृत 'त्रिषशिला कापुरुपचरित' में प्रद्युम्न के जीवन की जो कथा दी गई हैं उसमें और सारु कवि द्वारा वर्णित कथा में भी प्रायः समानता है ।
प्रधुम्न का जीवन जैन साहित्यकों के लिये हो नहीं किन्तु जैनेतर साहित्यिकों के लिये भी आकर्षण की वस्तु रहा है। विष्णु पुराण के पंचम अंश के २६ वें तथा २ वें अध्याय में रुक्मिणी एवं प्रद्युम्न की जो कथा दी हुई है, वह निम्न प्रकार है।
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रुक्मिणी कुण्डिनपुर नगर के भीष्मक राजा की कन्या थी। श्री कृष्ण ने रुक्मिणी के साथ और रुक्मिणी ने कृष्ण के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की, किन्तु भीष्मक ने शिशुपाल को रुक्मिणी देने का निश्चय कर लिया। इस कारण विवाह के एक दिन पूर्व ही श्री कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर लिया और इसके बाद उसके साथ उसका विधिवत् विवाह सम्पन्न
ॐ आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर में इसकी हस्तलिखित प्रति सुरक्षित है।